Skip to main content

समाजशास्त्र की मूल संकल्पना || ESO - 11 || ignou 2nd year chapter 2


इकाई 2

समाजशास्त्र की मूल संकल्पना

समाजशास्त्र की मूल संकल्पना
संकल्पना वह शब्द या वाक्यांश है जिसे वास्तविक अनुभव से निकालकर बनाया गया है जैसे, कार एक संकल्पना है जो एक विशिष्ट प्रकार के वाहन को बताती है इसी प्रकार घर में एक टेबल या लैंप भी संकल्पनाए हैं

   प्रत्येक विज्ञान में संकल्पना ओं की आवश्यकता होती है क्योंकि इनके द्वारा सही अर्थों तक पहुंचा जाता है समाजशास्त्र की भी बहुत संकल्पना हैं जिन्हें सभी समाजशास्त्री एक ही रूप में समझते हैं इनमें से कई ऐसे संकल्पना शब्दों या वाक्यांशों मैं बताई गई है जिनका रोजमर्रा इस्तेमाल होता है इसलिए यह जरूरी है कि इन्हें समाजशास्त्रीय रूप में इस्तेमाल करते समय सावधानी बरती जाए

समाज की संकल्पना
समाज शास्त्र के अनुसार समाज सामाजिक संबंधों की कड़ी होती हैं एक व्यक्ति का व्यवहार दूसरे व्यक्ति के व्यवहार को प्रभावित करता है उदाहरण के लिए एक अध्यापक जब कक्षा में प्रवेश करता है तो विधार्थी शोर मचाना बंद कर देता है और अपने अध्यापक को आदर देने के लिए खड़े हो जाते हैं दूसरे शब्दों में इससे सामाजिक संबंधों का ज्ञान होता है

समाज के प्रकार
समाजशास्त्र के क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए हम समाज को 2 वर्ग में बांटते हैं सरल एवं जटिल सभी प्राचीन या जनजातियां सामाजिक संगठनों को सरल समाज में शामिल किया जाता है औद्योगिक समाज को जटिल समाज कहा जाता है

सामाजिक समूह
एक परिवार या एक दल( पार्टी) को एक समूह कहा जा सकता है और समाज शास्त्रियों ने समूह को दो भागों में विभाजित किया है प्राथमिक एवं गोण समूह
प्राथमिक समूह -  इसके सदस्यों का आम तौर पर एक दूसरे से आमने-सामने संपर्क होता रहता है और उनका आपस में घनिष्ठ संबंध होता है साथ ही वह बहुत वफादार भी होते हैं इसका एक अच्छा example परिवार है

गोण समूह -यह प्राथमिक समूह के बिल्कुल उल्टे होते हैं हमेशा तो नहीं लेकिन आमतौर पर यह बड़े आकार के समूह होते हैं इस समूह के सदस्यों को एक दूसरे की जगह या बाहर की किसी व्यक्ति के साथ बदला जा सकता है क्रिकेट के टीम, कारखाना आदि गोण समूह के उदाहरण हैं

प्रस्थिति एवं भूमिका
 समाज में होने वाले पारस्परिक संबंधों के संगठन में हर व्यक्ति की एक निश्चित जगह होती है उसे ही प्रस्थिति कहा जाता है कोई भी व्यक्ति एक दूसरे को प्रभावित नहीं कर सकता यदि दी गई प्रस्थिति मैं उसकी प्रस्थिति के साथ-साथ दूसरे व्यक्ति की प्रस्थिति मालूम ना हो इस प्रकार परिवार के संबंधों में कोई परेशानी नहीं होती क्योंकि प्रत्येक सदस्य को अपनी एवं दूसरे की प्रस्थिति की जानकारी होती है
प्रस्थिति के प्रकार -  समाजशास्त्री प्रदत्त प्रस्थिति एवं उपार्जित प्रस्थिति में भेद करते हैं जो स्थिति व्यक्ति जन्म से या बिना कोई प्रयास किए प्राप्त करता है उसे प्रदत प्रस्थिति कहते हैं उपार्जित प्रस्थिति वह होती है जिसे व्यक्ति प्रयास द्वारा प्राप्त करता है

सामाजिक संस्था
सामाजिक संस्था को लक्ष्य और दृढ़ता से स्थापित किया गया हो के रूप में परिभाषित किया जा सकता है सामाजिक संस्थाओं के अध्ययन में सामाजिक जीवन के क्षेत्र में समूह, विश्वास एवं भूमिका शामिल होती है सामाजिक संस्था एक ऐसा गठन प्रदान करती है जिसमें विभिन्न समाज और संस्कृतियों के लोग रहते हैं यह समाज को एकता प्रदान करती है लोग परिवार में पैदा होते हैं यह परिवार भी एक संस्था है धार्मिक अनुभव भी एक सामाजिक संस्था है* एक सामाजिक संस्था के रूप में परिवार एक धूरी है जिसके इर्द-गिर्द सभी सामाजिक संस्थाएं घूमती हैं क्योंकि यह समाज को अलग-अलग सदस्य प्रदान करता है

संस्कृति
संस्कृति एक और ऐसा महत्वपूर्ण विषय है जिसमें समाज शास्त्रियों का ध्यान आकर्षित हुआवह लोग भी जो समाजशास्त्र से परिचित नहीं है वह “ संस्कृति” शब्द से बखूबी परिचित हैं समाजशास्त्रीय शब्दों में संस्कृति को सीखे जाने वाले सभी मानवीय क्रियाकलापों के कुल जोड़ के रूप में परिभाषित किया जा सकता है यह कि जकला समाज विशेष की सदस्यता के द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी चलते रहते हैं समाजशास्त्र के अध्ययन करने का एक लाभ यह है कि विभिन्न संस्कृतियों के बारे में जानकारी देने के साथ-साथ यह हर व्यक्ति की अपनी संस्कृति के अलावा अन्य संस्कृतियों के बारे में समझ पैदा करने में भी सहायता करता है

लोकरीतीयां  - व्यवहार संबंधी कुछ विधियां होती हैं जो हमारे दैनिक जीवन को नियंत्रित करती हैं तथा दूसरे व्यक्ति से हमारा संपर्क रखती है इस प्रकार अध्यापक के कक्षा में प्रवेश लेने पर विधार्थी का खड़े हो जाना, महिलाओं को बिना लाइन में लगे टिकट लेने देना, नौकरी मिलने पर मिठाई बांटना आदि कुछ लोकरीतीयां के उदाहरण हैं बहुत - सी लोकरीतीयां केवल नम्रता के कारण होती है

लोकाचार -  जो समुदाय द्वारा अधिक महत्व समझे जाते हैं और समुदाय कल्याण के लिए जरूरी होते हैं लोकाचार कहलाते हैं सभी विवाहित पुरुषों एवं महिलाओं को अपनी पत्नी एवं पति के प्रति वफादार रहना तथा योन निष्ठा का पालन करना चाहिए इसके विपरीत अनावश्यक व्यवहार नहीं करना चाहिए जैसे महिलाओं को अपना शरीर नहीं दिखाना चाहिए इत्यादि लोकाचार के उदाहरण है लोकाचार जिन बातों पर प्रतिबंध लगाते हैं वह सच मैं हानि प्रद हैं  या नहीं मालूम नहीं होता इस प्रकार लोकाचार कार्यों के उचित या अनुचित होने के विश्वास मात्र नहीं होते हैं

सामाजिक परिवर्तन - औद्योगिक क्रांति द्वारा लाई गई परिवर्तनों ने आधुनिक समाजशास्त्र के उदय में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है समाजशास्त्र के लगभग 200 सालों के संपूर्ण इतिहास में सामाजिक परिवर्तन में रुचि इस अनुशासन का मुखिया सरोकार रहा है

समाजशास्त्री सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया का काफी समय से अध्ययन कर रही हैं फिर भी इनकी संक्षिप्त परिभाषा देना कठिन है सामाजिक परिवर्तन उस प्रक्रिया की ओर संकेत करता है जिसके द्वारा समाज या सामाजिक संबंधों में परिवर्तन आता है सामाजिक परिवर्तन निरंतर होने वाली प्रक्रिया है सामाजिक परिवर्तन के कई कारण हो सकते हैं जनसंख्या में वृद्धि या नए विचार या कोई एक लक्ष्य नए सामाजिक संबंधों का निर्माण कर सकता है

Comments

Popular posts from this blog

पशुपालक खानाबदोश || UNIT - 02 || M.A 1ST YEAR || IGNOU

इकाई दो                                    पशुपालक खानाबदोश     प्रस्तावना -  पशुपालक खानाबदोश एक जगह अपना मुख्य निवास स्थान बनाते थे और जरूरत पड़ने पर दूसरे इलाकों में जाते थे वह विभिन्न प्रकार के पेड़ पौधों के बारे में जानकारी रखते थे और अपने जीवन यापन के लिए इसका उपयोग करते थे संतानोत्पत्ति , निवास और उनके भोजन की भी जानकारी रखते थे इस ज्ञान से उन्हें पेड़ पौधे लगाने और पशु पालने में सुविधा हुई   कुछ समूह शिकार और संग्रह करते रहे और आज भी कुछ ऐसे अलग समूह है जबकि दूसरे समूह ने पशुपालन को जीवनयापन का प्रमुख साधन बना लिया या खेती को जीवन यापन का प्रमुख हिस्सा बना लिया पशुपालन एक नए बदलाव की आहट थी लोग एक जगह रह कर खेती करने लगे और लोगों ने जानवरों को पालना सीख यह इनकी जीवनशैली का पहला कदम था   पशुओं को पालतू बना...

Unit -4 मार्गदर्शन एवं परामर्श : अवधारणा एवं रणनीतियां

            Unit -4     2. मार्गदर्शन एवं परामर्श : अवधारणा एवं रणनीतियां मार्गदर्शन एवं परामर्श ( Guidance and councelling )   मार्गदर्शन या निर्देशन शब्द का अर्थ सहायता करने से ले जाता है शिक्षा के क्षेत्र में इस अवधारणा का महत्वपूर्ण स्थान है बाल पोषण की परिभाषा मानव क्रियाओं में शैक्षिक , व्यवसायिक , मनोरंजन संबंधी , तैयार करने , प्रवेश करने और प्रगति करने में व्यक्ति की सहायता करने की प्रक्रिया के रूप में की जा सकती है विभिन्न मनोविज्ञान ने मार्गदर्शन की विभिन्न परिभाषा दी हैं मार्गदर्शन को व्यक्ति को उसके जीवन के लिए तैयार करने और समाज में उसके स्थान के लिए तालमेल करने में या सहायता देने के रूप में परिभाषित किया जाता है   मार्गदर्शन वह स्थिति है जहां से व्यक्ति शैक्षणिक तथा व्यवसाय उपलब्धियों के लिए विभाजीत होते हैं ( केफेयर )     माध्यमिक शिक्षा आयोग 1952 ...

घर - बहार ( महादेवी वर्मा) || Chapter 4 hindi b || b.a 2nd/3rd year hindi - b

           4.  घर - बहार ( महादेवी वर्मा )   महादेवी वर्मा का निबंध “ श्रृंखला की कड़ियां ”  में लेखों का संग्रह है   जिनमें नारियों की समस्याओं को लिखा है इन्होंने भारतीय नारी की प्रति स्थितियों को अनेक बिंदुओं से देखने का प्रयास किया है अन्याय आदि . मैं तो सर्जन के प्रकाश - तत्वों के प्रति निष्ठावान हूं उनका यह व्यक्तवय उनके निबंध “ घर बाहर ” के संदर्भ में भी उचित है लेखिका ने नारियों की घर और बाहर की स्थितियों पर विचार प्रकट किया है लेखिका का मानना है कि “  युगो से नारी का कार्य - क्षेत्र घर में ही सीमित रहा “ उनके कर्तव्य को निर्धारित करने में उसकी कोमलता , संतान पालन आदि पर तो ध्यान रखा ही गया , साथ ही बाहर के कठोर संघर्ष में वातावरण और परिस्थिति में भी समाज को ऐसा ही करने के लिए बाध्य किया घर - व - बाहर का प्रश्न उच्च , माध्यम तथा साधारण वित्त वाले , घर की स्त्रियों से संबंध रखता है यह...