Skip to main content

नारीवादी आंदोलन || HISTORY ||

              B.A 3rd Year History || Chapter 7 || Unit - 8 || 
                         
              

                   नारीवादी आंदोलन

नारीवाद शब्द की उत्पत्ति 19वीं शताब्दी के बाद हुई लेकिन इसका इतिहास बहुत पुराना है आधुनिक नारीवाद पर पहली पुस्तक मेरी वॉलस्टोन क्रस्ट ने लिखी, इसमें फ्रांस की क्रांति की पृष्ठभूमि के बारे में लिखा है भारत में नारीवाद पर विचार समाज सुधारक आंदोलन से शुरू हुआ, जिसमें सती प्रथा, बाल विवाह जैसे कार्यों की निंदा की गई और यह कहा जाता है की नारी पुरुष की तुलना में कमजोर है और यह कमजोरी ना तो प्राकृतिक है और ना ही कोई परिणाम है बल्कि यह कमजोरी राजनीतिक है इसमें कुछ चुनौतियां और बदलाव हो सकते हैं और होने चाहिए
 19वीं शताब्दी तक नारीवाद के आंदोलन का विकास नहीं हुआ था सर्व प्रथम फ्रांसीसी नारियों ने यह मांग की कीजब तक महिलाओं को मत देने का अधिकार नहीं होगा तब तक लिंग आधारित भिन्नता रहेगी
 संयुक्त राज्य में 1848 में प्रसिद्धसेनेका फाल्ससम्मेलन हुआ, जिसमें महिलाओं के अधिकार को लेकर पहली बार आंदोलन हुआ
   1869 में स्टैंटन सुशान बी, ने महिलाओं के चुनाव में मतदान के अधिकार को लेकर एक आंदोलन शुरू किया
 1903 में uk मैं नारियों के सामाजिक राजनीतिक  संघ की शुरूआत की गई
1893 में न्यूजीलैंड में सर्वप्रथम महिला को चुनाव में मत डालने का अधिकार प्राप्त हुआ और 1918 1920 में UK संयुक्त राष्ट्र ने भी महिलाओं को अधिकार दे दिए इससे इन आंदोलनों को नई प्रेरणा मिली
 बीसवीं शताब्दी में नारियों ने स्वयं के संगठन खोलना शुरू किए  और नारी वादियों को सदस्य बनाया 1960 में इसके ऊपर ज्यादा सोचा गया इस समय नारीवाद का आंदोलन एक अकेले लक्ष्य से परे हैं
 19 आंदोलन से नारीवाद की विचारधारा बनी और ऐसा माना जाता है कि नारी की दिशा जन्म पर निर्भर करती है लोगों के द्वारा यह निर्धारित हो चुका था कि दोनों लिंग अलग हैं उनके कार्य अलग हैं उनके लक्ष्य अलग हैं

 नारीवाद की विचारधाराएं

Ø नारीवाद की कुछ विचार धाराएं जैसे पुरुष प्रधान शासनपितृसत्ताअर्थात परिवार पर हमेशा सबसे बड़े पुरुष का नियंत्रण होगा नारीवाद ने इस शब्द पितृसत्ता से बताया कि समाज में की नारी क्या स्थिति है जहां पुरुष सबसे बड़ा होता है या परिवार में उसी की सुनी जाती है जिंदगी पुरुष प्रधान समाज पर ही चलती है पितृसत्ता के बहुत से सदस्य शामिल हैं जैसे नर बच्चों की विशेषता, लड़के और लड़की में भेदभाव करना, लड़कियों को शिक्षा में कमी, महिलाओं के कंधों पर घर का सारा बोझ और उनको व्यवसाय ना करना देना, यह शब्द और महिला के संपत्ति के अधिकार से भी जुड़ा है यानी की संपत्ति में से सिर्फ पिता के बेटे का अधिकार होगा यानी उसकी पत्नी या बेटी का अधिकार नहीं होगा तथा बेटियों को बोझ की तरह भी देखा जाता है वही अपने लड़के को शेर की तरह देखा जाता है उसे अपने पिता के यहां थोड़ा समय के लिए ही माना जाता है और यह भी माना जाता है कि उनके परिवार में होने या होने से कोई फर्क नहीं पड़ता पुरुष को हमेशा परिवार का उत्तर अधिकारी माना जाता है परिवार के आगे बढ़ने की रिति उसी से जुड़ी है

Ø नाजीवाद यह विश्वास करते हैं कि यह सब तथ्य पुरुषों के परिवार पर शासन करने को दर्शाता है समाज में  पितृसत्ता व्यवस्था को ही ऊपर माना जाता है वे जिन में पुरुष का स्थान सबसे ऊपर  वे नारी का स्थान कम महत्वपूर्ण समझा जाता है पुरुष पितृसत्ता के अंदर अपने शक्तियों में अधिकार का गलत फायदा उठाते हैं
Ø आदमी ने औरत को अपना दास बना लिया इस  पितृसत्ता व्यवस्था ने पिछले 200 सालों से महिलाओं को राजनीतिक कानूनी पहचान से वंचित रखा और शिक्षा से भी वंचित रखा तथा राजनीतिक कानूनी पहचान प्रदान करने वाले ऐसे किसी विधान को भी नहीं बनने दिया बीसवीं शताब्दी में आते आते कुछ अधिकार को दिए गए

 मिलेट के अनुसार -  पितृसत्ता के दो मत हैं पुरुष महिला प्रशासन करेगा और वृद्ध पुरुष अपने पुरुषों पर |   
मातृसत्ता समाज के प्रमाण मिले हैं जहां परिवार की  सरदार महिलाएं होती हैं  नारी वादियों के लिए पितृसत्ता का अर्थ समझना एक कड़ी चुनौती है

Ø 1960  में महिला आंदोलन ने महिलाओं के शोषण के लिए जिम्मेदार इस व्यवस्था को चुनौती दी  इस का पलड़ा हमेशा पुरुषों की ओर झुका होता है बहुत लोग इसे जेंडर की श्रेणी में देखते हैं जो नारी का दमन शोषण ही करते हैं पितृसत्ता सोच के अंतर्गत महिला को वस्तु के रूप में देखा जाता है
Ø इसकी जड़ धर्म में भी हैं चाहे बाइबल हो या मनुस्मृति या कोई भी ऐसा ग्रंथ जिसे कोई धर्म स्वीकार करता है जैसे  मनुस्मृति में कहा गया है महिलाओं को अपने पति को देवता मानना चाहिए नारीवाद यह भी सोचते हैं कि लिंग विभेदन समाज में राजनीतिक है प्राकृतिक नहीं क्योंकि कार्यों में लिंग बिना समाज में दौड़ रही है इसलिए वह इसे प्राकृतिक ना मानकर राजनीतिक मानते हैं परंपराओं से पुरुषों को बाहर के कार्यों के लिए जिम्मेदार वह महिलाओं को घरेलू कार्य की जिम्मेदारी दी जाती है महिला को शुरू से ही निजी राजनीति से कोई मतलब नहीं है महिला अपने शौक को भी मारती है
Øनारीवादी सार्वजनिक क्षेत्र में बराबरी चाहते हैं नारीवाद की मुख्य विचारधारा सेक्स जेंडर में भिन्नता है  सेक्स एक जीव विज्ञान शब्द है जो पुरुष स्त्रियों में करता है पर यह प्राकृतिक है जेंडर प्राकृतिक शब्द नहीं है यह सांस्कृतिक है

Ø उदारवादी नारीवाद यह विश्वास करते हैं कि दोनों लिंगों और वर्ग में अत्याचार को समाप्त करना चाहिए  और तो और महिला को समानता का अधिकार भी नहीं मिला क्योंकि जो संगठन बनाए गए थे वह पुरुषों के द्वारा बनाए गए थे लिंग आधारित सामान तक की कोई आशा नहीं थी और लगातार महिला को सामाजिक काम  से दूर रखा गया जिसका परिणाम यह हुआ कि यह विश्वास होने लगा कि वह कार्य उनके अनुकूल नहीं है  उदाहरण :-  बच्चों का पालन पोषण, और कार्य एक साथ नहीं चलता

 नारीवाद के विभिन्न संप्रदाय(परंपरा से चली रही प्रथा या रीति)
1. उदारवादी, समाजवादी इत्यादि
1, उदारवादी नारीवाद समान अधिकार की बात करते हैं उदारवाद का मानना है कि मनुष्य ईश्वर द्वारा समान रूप से बनाए गए हैं और सब के अधिकार समान है महिला के अंदर भी पुरुषों के समान मानसिक क्षमता होती है इसलिए उनको समान अवसर दिया जाना चाहिए उदारवाद नारीवादी महिलाओं को इस उत्पीड़न लैंगिक भूमिका से स्वतंत्र करना  चाहती है जॉन स्टुअर्ट मिल उदारवादी के बड़े समर्थक थे उनके अनुसार अपने विकास के लिए हर व्यक्ति( स्त्री/ पुरुष) स्वतंत्र है उदारवादी को सुधारवादी भी कहा जा सकता है

2. सामाजिक नारीवादी का ध्यान नारी के दोनों जीवन निजी सार्वजनिक पर है उनके अनुसार महिला के आर्थिक सांस्कृतिक दमन को समाप्त करके ही स्वतंत्रता मिल सकती है मार्क्सवाद ने पूंजीवाद पितृसत्ता के बीच कहा कि दोनों एक दूसरे से जुड़े हैं पूंजीवाद पुरुषों  की संपत्ति के अधिकार के बारे में है रूढ़िवादी परिवारों में पितृसत्ता हमेशा से ही है क्योंकि वे अपनी संपत्ति अपने बेटे द्वारा आगे बढ़ाएगा
 नारी केवल पुरुष द्वारा ही नहीं सताई जाती बल्कि पूंजी वह निजी संपत्ति के लिए भी सताई जाती है इसलिए पूंजीवाद आंदोलन को हटाकर समाजवाद को लाना चाहिए नारीवाद में 1 तर्क उनके रन को लेकर उनके दामन पर दिया  गोरी महिला द्वारा काले रंग की  नारियों का दमन, तथा काले रंग वाली नारी की स्वतंत्रता सभी स्थान पर हो उन्हें जातिवाद, वर्ग लिंग से स्वतंत्रता दिलाने की जरूरत है 1970 में काले रंग की महिलाओं ने संगठन शुरू किए वे इसके खिलाफ लड़ना शुरू किया पहला नारीवाद केवल गोरी महिलाओं का नहीं है दूसरा गोरी महिला संगठन से उनकी मांग थी किउनके साथ वह अपनी शक्ति को बांटे और अंतर को कम करें

भारत में नारीवादी आंदोलन
 नारियों के अधिकार से जुड़े आंदोलन भारत में नहीं थे उस समय बहुत से आंदोलन थे जो समकालीन वह स्वतंत्रता से पूर्व थे जबकि इनका अर्थ यह नहीं है कि यहां नारियों को लेकर कोई आंदोलन नहीं उठा बल्कि वे अलग ना होकर सामाजिक आंदोलन का ही भाग होते थे
 19 वीं शताब्दी के बाद समाजवादी सुधारक आए जो पश्चिमी शिक्षा में दक्ष थे जिन्होंने पहली बार स्त्रियों के दमन को लेकर प्रश्न उठाया जैसे ब्रहम समाज, प्रार्थना समाज, आर्य समाज आदि | उन्होंने समाज को सुधारने का बड़ा काम शुरू किया जिस में स्त्रियों के पक्ष सम्मिलित थे स्त्रियां इन आंदोलन में कम थी इनमें पुरुषों की संख्या अधिक थी जिन्होंने पितृसत्ता के जारी रहने पर कई  तर्को को कई रूप में उठाया
 जैसे सती प्रथा, नारी शिक्षा, विधवा पुनर्विवाह, कन्या भूण हत्या, बाल विवाह, पर्दा प्रथा, राजा राममोहन राय ने सबसे पहले सती प्रथा के खिलाफ आवाज उठाई | “ उन्होंने कहा सती प्रथा समाज की सबसे बड़ी बुराई है इसे समाप्त करना चाहिए”  अतः 1829 में राजा राममोहन राय की मांग को स्वीकारा गया और सती प्रथा एक्ट को जारी किया बाद में नारी शिक्षा और बहुत सारे संगठन बने जिन्होंने सरकार के ऊपर दबाव बनाया
 1890 में विधवा पुनर्विवाह एक्ट जारी हुआ जल्दी बाल विवाह भी प्रकाश में आने लगा उनकी उम्र 14 से 18 कर दी गई

 समकालीन भारत में नारी शिक्षा
 आजादी मिलने के बाद भारत में स्थिति को सुधारने की बड़ी आशाएं थी नारी आंदोलन के कार्य कर्ताओं ने हिंदू कोड बिल पर 1950 में विवाद शुरू किया इसमें उम्र का मुद्दा, तलाक का अधिकार, जैसे मुद्दे शामिल थे डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने विवाह, तलाक, ग्रहण करना संपत्ति का अधिकार का सहयोग किया
 1946 1951 में आंध्र प्रदेश में उठे तेलंगाना आंदोलन में सबसे बड़ी संख्या महिलाओं की थी 1970 में चिपको आंदोलन एक महत्वपूर्ण आंदोलन था जिस में महिलाओं की भागीदारी ज्यादा दिखी वह पर्यावरण आंदोलन था जिसमें उत्तरांचल में वनों को काटने से बचाना था

 बाद में सरकार ने 73 वा  संविधान संशोधन पारित किया 22 दिसंबर 1992 मैं जारी हुआ और 1993 मैं अपनाया गया जिसमें महिला के लिए 33% आरक्षण दिया गया जिसमें महिला को अपनी आवाज वह अपने अधिकार बनाने की स्वतंत्रता दी वे लोकसभा में आरक्षण को लेकर लड़ रही थी उनके अनुसार महिलाओं की उपस्थिति नारी  सशक्तिकरण को आगे बढ़ाने का एक कदम है संसद में 1/3 सीटों (33%) का आरक्षण मिल गया

Comments

Popular posts from this blog

पशुपालक खानाबदोश || UNIT - 02 || M.A 1ST YEAR || IGNOU

इकाई दो                                    पशुपालक खानाबदोश     प्रस्तावना -  पशुपालक खानाबदोश एक जगह अपना मुख्य निवास स्थान बनाते थे और जरूरत पड़ने पर दूसरे इलाकों में जाते थे वह विभिन्न प्रकार के पेड़ पौधों के बारे में जानकारी रखते थे और अपने जीवन यापन के लिए इसका उपयोग करते थे संतानोत्पत्ति , निवास और उनके भोजन की भी जानकारी रखते थे इस ज्ञान से उन्हें पेड़ पौधे लगाने और पशु पालने में सुविधा हुई   कुछ समूह शिकार और संग्रह करते रहे और आज भी कुछ ऐसे अलग समूह है जबकि दूसरे समूह ने पशुपालन को जीवनयापन का प्रमुख साधन बना लिया या खेती को जीवन यापन का प्रमुख हिस्सा बना लिया पशुपालन एक नए बदलाव की आहट थी लोग एक जगह रह कर खेती करने लगे और लोगों ने जानवरों को पालना सीख यह इनकी जीवनशैली का पहला कदम था   पशुओं को पालतू बना...

Unit -4 मार्गदर्शन एवं परामर्श : अवधारणा एवं रणनीतियां

            Unit -4     2. मार्गदर्शन एवं परामर्श : अवधारणा एवं रणनीतियां मार्गदर्शन एवं परामर्श ( Guidance and councelling )   मार्गदर्शन या निर्देशन शब्द का अर्थ सहायता करने से ले जाता है शिक्षा के क्षेत्र में इस अवधारणा का महत्वपूर्ण स्थान है बाल पोषण की परिभाषा मानव क्रियाओं में शैक्षिक , व्यवसायिक , मनोरंजन संबंधी , तैयार करने , प्रवेश करने और प्रगति करने में व्यक्ति की सहायता करने की प्रक्रिया के रूप में की जा सकती है विभिन्न मनोविज्ञान ने मार्गदर्शन की विभिन्न परिभाषा दी हैं मार्गदर्शन को व्यक्ति को उसके जीवन के लिए तैयार करने और समाज में उसके स्थान के लिए तालमेल करने में या सहायता देने के रूप में परिभाषित किया जाता है   मार्गदर्शन वह स्थिति है जहां से व्यक्ति शैक्षणिक तथा व्यवसाय उपलब्धियों के लिए विभाजीत होते हैं ( केफेयर )     माध्यमिक शिक्षा आयोग 1952 ...

घर - बहार ( महादेवी वर्मा) || Chapter 4 hindi b || b.a 2nd/3rd year hindi - b

           4.  घर - बहार ( महादेवी वर्मा )   महादेवी वर्मा का निबंध “ श्रृंखला की कड़ियां ”  में लेखों का संग्रह है   जिनमें नारियों की समस्याओं को लिखा है इन्होंने भारतीय नारी की प्रति स्थितियों को अनेक बिंदुओं से देखने का प्रयास किया है अन्याय आदि . मैं तो सर्जन के प्रकाश - तत्वों के प्रति निष्ठावान हूं उनका यह व्यक्तवय उनके निबंध “ घर बाहर ” के संदर्भ में भी उचित है लेखिका ने नारियों की घर और बाहर की स्थितियों पर विचार प्रकट किया है लेखिका का मानना है कि “  युगो से नारी का कार्य - क्षेत्र घर में ही सीमित रहा “ उनके कर्तव्य को निर्धारित करने में उसकी कोमलता , संतान पालन आदि पर तो ध्यान रखा ही गया , साथ ही बाहर के कठोर संघर्ष में वातावरण और परिस्थिति में भी समाज को ऐसा ही करने के लिए बाध्य किया घर - व - बाहर का प्रश्न उच्च , माध्यम तथा साधारण वित्त वाले , घर की स्त्रियों से संबंध रखता है यह...