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ज्ञानोदय की आलोचना || MHI -02 || IGNOU ||

       MHI -- 02  
  ज्ञानोदय की आलोचना
रोमांटिक चिंतक -  18 वीं सदी के अंत में ज्ञानोदय को चुनौती मिली जो रोमांटिक चिंता कहलाए
रोमांटिक चिंतकों ने वर्तमान में मनुष्य की हालत में गिरावट देखी उन्होंने ज्ञानोदयकालीन चिंतन
के हर एक पहलू पर सवाल खड़े किए चाहे वह सत्य, विज्ञान और विवेक संबंधी धारणा हो या प्रगति
की धारणा उनकी नजर में श्रम विभाजन, कामों के बंटवारे और तकनीक के प्रयोग से मनुष्य भ्रष्ट हुआ
है और उनकी शांति तथा आराम नष्ट हो गया है असल में इससे प्रकृति और मनुष्य में दरार पड़ गई है
अब वह औद्योगिक पूंजीवाद द्वारा थोपी गई समय और कार्य की व्यवस्था का गुलाम बन गया है. रूसो
जैसे चिंतकों ने  कहां है की प्राकृतिक अवस्था में ही मनुष्य की वास्तविक जरूरतें पूरी हो सकती है रोमांटिक
चिंतकों ने अतीत का महिमामंडन किया, चिंतकों की रचनाएं सामंतवाद की ओर लौटने की इस वर्ग की मांग
के अनुकूल में है,ज्ञानोदयकालीन चिंतकों ने वर्तमान को अतीत से बेहतर बताया तथा अतीत को वर्तमान की
अपेक्षा अंधविश्वास आदि से परिपूर्ण कहा. जबकि रोमांटिक चिंतकों ने अतीत की तुलना में वर्तमान में
मनुष्य को पतन देखा, रूसो के अनुसार प्राकृतिक अवस्था वर्तमान मनुष्य की सामाजिक अवस्था से कहीं
अधिक अच्छी थी प्रत्येक मनुष्य अन्य के समान था और बड़े छोटे का कोई भेद नहीं होता था पशुओं की तरह
ना तो उनका कोई निश्चित घर था और ना ही कोई चिंता यह अवस्था अधिक समय तक रह सकी 


नीत्शे - नीत्शेने यह माना कि आधुनिक दुनिया बंजर हो चुकी है जिसमें आदमी अकेला हो गया है लेकिन उसने
यह भी कहा कि प्रकृति या धर्म की ओर लौटने से स्वतंत्र मनुष्य को शांति, खुशी नहीं मिल सकती अतीत में
हमारे युग के मुकाबले अधिक खुशी थी इस सवाल पर अपने आप को धोखे में रखने से कोई फायदा नहीं लेकिन
हमारा ज्ञान का आवेश इतना बढ़ गया है की खोज और भविष्य कथन का हमें नशा हो गया है हमारे भीतर ज्ञान
एक उन्माद रूप धारण कर चुका है  मनुष्य के मन में अपनी मौत को छोड़कर किसी भी चीज का खौफ नहीं रह
गया है हो सकता है मानव जाति ज्ञान के प्रति इस पागलपन के चलते बर्बाद हो जाए लेकिन इससे भी मुझे डर
नहीं लगता. नीत्शे का कहना था कि सभी चिंतकों ने एक चीज शादी है उन्हें अपने ऊपर और ज्ञान पर दृढ़
विश्वास था उन्हें यकीन था कि वह सत्य पा चुके हैं ऐसा लगता है कि हर एक चिंतक ने अपने तरीके से दावा
किया है कि उसने मनुष्य से अलग और स्वतंत्र रूप से मौजूद दुनिया की सच्चाई को खोज लिया है, वर्तमान
दुनिया में जो कुछ भी मूल्यवान है उसका मूल्य उसकी प्रकृति के कारण नहीं है इसकी बजाय उसे मूल्य प्रदान
कर दिया गया है यानी उस पर थोप दिया गया है हमने ही वह दुनिया बनाई है, नीत्शेके लिए ज्ञान परम
महत्वपूर्ण था *, विज्ञान के पंडित उसे ही खोजने की कोशिश करते हैं जो पहले से ही मौजूद हैं इसके विपरीत
कलाकार नई दुनिया को आकार देता है कलाकार अकेले ही पश्चिमी दार्शनिक परंपराओं के लिए चुनौती की
तरह खड़ा है


 कार्ल मार्क्स - औद्योगिक कारखाना उत्पादन कार्य को छोटे-छोटे टुकड़ों में बांट देता है, यह काम को इस तरह
अलग-अलग खानों में बांट देता है कि हर एक व्यक्ति बार-बार वही काम करता रहता है साथ ही साथ व्यक्ति अपने ही उत्पाद से अलग हो जाता है कारखानों में उसकी ही मेहनत से तैयार की हुई चीजें से वह अपने आप को जोड़ नहीं सकता मजदूर सरल चीजों से लेकर जटिल मशीनों तक सब कुछ बनाता है इस तरह काम मनुष्य के दमन उत्पीड़न का तरीका बन जाता है. संतुष्टि महसूस करने के साधन की बजाय काम उत्पीड़न गतिविधि बन जाता है, जिन औद्योगिक शहरी निवासियों में मजदूर रहते हैं वह भी उपयोगिता के जरूरत के सिद्धांत पर चलते हैं लोग एक दूसरे को उपयोग मूल्य वाली वस्तुओं की तरह देखते हैं इसी आधार पर उनके आपसी संबंध बनते हैं 

 विज्ञान के आलोचक -- कई विद्वानों ने विज्ञान के बारे में संदेह प्रकट किया ज्ञानोदयकालीन चिंताको ने
विज्ञान को ब्रह्मांड का रहस्य जानने वाला करार दिया .लेकिन इस विचारधारा को चुनौती देते हुए विज्ञान
को हिंसा प्रोत्साहन देने वाला करार दिया गया आधुनिक चिंतकों ने विज्ञान को उत्पीड़न से जोड़ा.आलोचकों
के अनुसार विज्ञान ने प्रगति के साथ-साथ इंसान के लिए भी खतरा पैदा किया है विज्ञान की तरक्की से बड़ी
संख्या में लोग अपने भौगोलिक पर्यावरण से उजड़ गए हैं बड़े कारखाने, बांध आदि ने लोगों को उनके स्थान
से उजाड़ दिया है. आलोचकों के अनुसार विज्ञान ने आधुनिक युग में ऐसे ऐसे हथियार विकसित किए हैं जिनसे
चुटकी बजाते ही संपूर्ण संसार का विनाश हो सकता है, विज्ञान के शांतिपूर्ण प्रयोग में भी हिंसा छुपी रहती है.
विज्ञान ने कृषि के क्षेत्र में भी घुसपैठ की है कृषि की जमीन की उर्वरा क्षमता नष्ट हो रही है रासायनिक खाद
से धीरे-धीरे जमीन की उर्वरता खत्म हो रही है तथा अधिक पैदावार देने वाले बीजों की वजह से किसानों को
समस्या का सामना करना पड़ता है आधुनिक आलोचकों के अनुसार विज्ञान ने कृषि तथा स्वास्थ्य के क्षेत्र में
मनुष्य का जितना कल्याण किया है उससे कहीं अधिक मनुष्य को समस्याओं के जाल में उलझा दिया है 

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