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MHI -01 UNIT 3 कृषि की और संक्रमण || IGNOU || M.A HISTORY

MHI -01 UNIT 3 कृषि की और संक्रमण (आगे बढ़ना)


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1.संक्रमण संबंधी सिद्धांत दृष्टिकोण 
  जलवायु दबाव - सबसे पहले इसकी व्याख्या 1903  मैं की गई जिसे ओएसीस थ्योरी ( मरुदीप सिद्धांत)
के नाम से जाना जाता है इस सिद्धांत का श्रेय गॉर्डन चाइल्ड को जाता है इसके संपूर्ण प्रभाव
को रेखांकित करने के लिए इसको नवपाषाण क्रांति कहा गया  इस सिद्धांत का मुख्य बल
उपजाऊ क्षेत्र के कुछ हिस्सों में जलवायु परिवर्तन के कारण खेती हुई, वर्षा से भरे बादल,
वह छोटे-छोटे मरुदीप बने, यानी हरे-भरे क्षेत्रों का निर्माण हुआ , जिससे आबादी बसने लगी
पेड़ पौधे उगने लगे और पशुओं का भी आगमन हुआ

  जनसांख्यिकी प्रारूप   - लेविस बिनफोर्ड(1968) ने पर्यावरण दवाब की अपेक्षा जनसंख्या के दबाव पर बल दिया
उनके अनुसार जिन स्थानों पर खाने-पीने की बेहतरीन सुविधा उपलब्ध होती थी
वहां जनसंख्या के तेजी से बढ़ने की भी संभावना ज्यादा होती थी आमतौर पर उपलब्धता
के मुख्य क्षेत्र के आसपास के क्षेत्र में ही प्रवासन होता था जहां कम लोग बसे होते थे धीरे-धीरे
आबादी बढ़ती गई और अब आबादी का बोझ क्षेत्र पर जरूरत से ज्यादा पढ़ने लगा तो समुद्र
तट पर रहने वाले लोगों और वहां उपलब्ध संसाधनों का संतुलन गड़बड़ा गया |  इस प्रकार के
जनसंख्या तनाव के कारण आबादी का कुछ हिस्सा वहां से हटकर बगल के क्षेत्र में जाकर बस
गया होगा 
डेविड हैरिस -(1969) ने यह तर्क दिया कि कृषि जनसंख्या और संसाधन के बीच पैदा हुआ
संतुलन का परिणाम था 


पौधे उगाना और पशुओं को पालतू बनाया जाना 
पौध उगाना - इजराइल से प्राप्त पौधों और बीजों से पता चलता है कि जब मनुष्य आदि खानाबदोश
स्थिति में था उस समय भी कुछ पौधे लगाए जाते थे 20,000 b.p  के बाद इसमें परिवर्तन
हुआ की बड़े-बड़े दानों वाले बीज और घास वहां उगने लगे इन घासो के बीज हवा चलने से
दूर के इलाकों में फैल जाते थे इस प्रकार गेहूं और जौ के बीज चारों और फैल जाते थे इन बीजों
को फिर से बोया जा सकता था और इस प्रकार फसल उगाई जा सकती थी 
   वेके  ने उपजाए गए  गेहूं में परिवर्तन को रेखांकित किया है उनके अनुसार दुनिया की
सबसे महत्वपूर्ण फसल गेहूं   को उगाने में मनुष्य अपनी तकनीक का इस्तेमाल करता
था इसके साथ-साथ प्रकृति भी इस में अपना सहयोग करती थी  मनुष्य की कोशिश यह
थी कि ऐसी किस्मों को उगाया जाए जो हवा के साथ ना गिरे और बाद में उन्हें आसानी
से निकाला जा सके विभिन्न प्रजातियों के जेनेटिक पदार्थों को मिलाकर आरंभिक किसान
गेहूं की ऐसी किस्में उगाते थे जो कहीं भी उगाई जा सकती थी कुछ ऐसे भी जंगली पौधे
होते थे जिनमें ऐसे जीन होते थे जिनसे पौधे कड़े होते थे और उनके बीच दिखाते नहीं थे
लगभग 20,000 b.p  के आसपास जब शिकारी संग्रह अपने भोजन में शामिल करने के
लिए पौधे इकट्ठे कर रहे थे उस समय उन्होंने अनुभव किया होगा कि ऐसे पौधे लगाने का
फायदा है जिनके तने खड़े रह सके और उनके बीज बिखरे नहीं और इन्हें जंगली पौधों से
दूर रखने की जरूरत थी बीज ऐसी जगह पर लगाना था जहां भूमि समतल हो, आसपास
पानी का स्रोत हो, और वहां वर्षा भी होती हो. खेती के साथ-साथ एक जटिल समाज का
उदय होता है और लोग एक जगह ज्यादा दिन तक टिककर रुकते हैं और अपने उत्पादों 
को भंडार गृह मैं सुरक्षित रखते हैं 


  • पशुओं को पालतू बनाना -  पालतू जानवर उसे कहते हैं जिसे मनुष्य अपने लाभ के लिए अपने पास बांधकर रखता है और उसका उपयोग करता है उसे खिलाता पिलाता है देखभाल करता है तथा प्रजनन कराता है पालतू कुत्ते, भेड़, गाय, भैंस और सूअर  अपने मालिक के पशुधन होते थे जो अपने मालिक के साथ साथ चलते थे पशु पालने की यह प्रक्रिया शिकारी- संग्रह कर्ताओं के बीच शुरू हुई होगी ,
  •  शिकारी- संग्रहकर्ताओं समुदायों ने शिकार में सहायता पहुंचाने के लिए भी जानवरों का पालना शुरू किया होगा पहली बार कुत्ता पालने का प्रमाण लगभग 24000 b.p  का मिलता है, वह सबसे पहले कुत्ते को ही पालतू जानवर बनाया गया था और संकट के समय में पालतू जानवरों का मांस भी खाया जाता होगा, बलि के लिए जानवरों को पकड़ा और पालतू बनाया गया होगा मनुष्य जिन जानवरों का शिकार करता था उन सभी जानवरों को     पालतू नहीं बनाया जा सकता था जिन जानवरों को पालतू बनाया गया वह शारीरिक और मनोवैज्ञानिक तौर पर पालतू बनाए जाने लायक जानवर थे और इससे उनकी प्रजनन क्षमता पर भी प्रभाव नहीं पड़ता था
  •  जबशुओं को चुराने की प्रथा शुरू हुई होगी तब झुंड में पशुओं को पालतू बनाना शुरू किया गया होगा और मनुष्य को नुकसान पहुंचाने वाले जानवर नहीं पालतू बनाए गए होंगे धीरे-धीरे पालतू जानवरों की एक अलग नस्ल और किस्म तैयार होती चली गई ,लगभग 18000 साल पहले कुत्तों और सूअरों को पाला जाने लगा था जो मनुष्य के बचे कूचे भोजन को खाकर जिंदा रह सकते थे पशुपालन के आरंभिक चरणों में बकरी, भेड़ और ऐसे ही अन्य पशुओं को मांस और खाल के लिए पालतू बनाया गया होगा पालतू बनाने के बाद ही यह पशु ज्यादा दूध लगते हैं और भेड़ों से उन ज्यादा निकलने लगता है परंतु यह लक्षण उन्हें पालतू बनाने के तुरंत बाद पैदा नहीं हुए इसमें जानवरों की 30 पीढ़ियों तक भी लग गई होंगी .


आरंभिक कृषि उत्पादन स्थल 
  • दक्षिण पश्चिम एशिया में खाद उत्पादन की शुरुआत
15000 b.p  के बाद तापमान बढ़ने से लगभग 3000 वर्षों के बाद लेवेंट और सीरिया में
वनों का विस्तार होने लगा था मनुष्य के रहने के लिए यह अनुकूल स्थिति थी वर्षा ज्यादा
होने से पहाड़ों में 1 का प्रसार हुआ आधुनिक तुर्की, सीरिया, इजराइल, और ईरानके पहाड़ों
और निचली पहाड़ियों पर जाड़े के दिनों में पर्याप्त वर्षा होती थी. लेवेंट में दो किस्म के गेहूं 
और जो उगा करती थी , भेड़ और बकरी के जंगली पूर्वज पहाड़ी इलाकों में रहा करते थे ,
जानवरों को साथ रखने और चराने की शुरुआत लगभग 15700 b.p के आसपास कैबरान
युग में हो चुकी थी,वे जंगली भेड़ों और बकरियों के पीछे पीछे घूमते थे जो घास की खोज में
गर्मी के दिनों में पहाड़ों पर चढ़ जाती थी .
आरंभिक नवपाषाण युग में 10000 b.p तक आते-आते बकरियां पाली जाने लगी, मटर,
मसूर और अन्य रेशेदार और प्रोटीन युक्त पौधे  आरंभिक नवपाषाण से प्राप्त हुए हैं पौधे
लगाने के लिए यानी खेती करने के लिए जमीन साफ करनी जरूरी होती थी .
कुर्दिश पहाड़ी के निचले हिस्सों में जैसे छोटे गांव 8750 b.p  के आसपास बसे हुए थे इस
समय बस्तियां ज्यादा देर तक टिकी रह सकी खुदाई के दौरान गेहूं, जो, मटर, और मसूर
के दाने मिले हैं प्राप्त हड्डियों से यह प्रमाणित होता है की आरंभिक किसान भेड़, बकरी
और सूअर पाला करता था लगभग 8250  वर्षों से लेकर 7000 वर्ष ईसा पूर्व तक सीरिया
और मेसोपोटामिया की विकसित संस्कृति में भी इस प्रकार की प्रगति देखी जा सकती है
7500 b.p के आसपास दक्षिण मेसोपोटामिया के कुछ हिस्सों पर सुमेर में सिंचाई पर
आधारित खेती, पशु और भेड़ पालन, खजूर की खेती और मछली मारने की विधि विकसित
हो चुकी थी .


अनातोलिया, यूरोप, और चीन से मिले प्रमाण 
  • अनातोलिया - यहां के नवपाषाण युग को दो चरण में बांटा गया है -10000 से 8000 b.p  और दूसरा चरण 7000 b.p तक कायम रहा यहां अनाज और पौधों की खेती के साथ-साथ बड़े तथा बकरी पाली जाती थी खेती की शुरुआत होने से पहले एक लंबा समय ऐसा गुजरा जिसमें शिकार और संग्रह से किसी की और संक्रमण होता रहा,    
  • 9 वी  सहस्राब्दी b.p के शुरू में लोग यहां रह करते थे और लगभग 7400 b.p तक यहां बस्ती सुनी हो गई
  • यहां की मिट्टी जलोढ़ उर्वरक मिट्टी थी यहां मुख्य रूप से स्तनपायी जानवर पाले जाते थे पश्चिमी एशिया के सभी स्थलों पर मुनाफा कमाने के लिए पशुधन का पूरी तरह विकास नहीं हो सका था बल्कि कहीं-कहीं निजी तौर पर पशु पाले जाते थे बड़े पैमाने पर पशुपालन की शुरुआत अनाज उत्पादन के साथ-साथ हुई, 


   यूरोप
 शिकार और संग्रह के तरीके हमेशा एक जैसे नहीं रहे और दुनिया के हर हिस्से
में परिवर्तन भी एक जैसा नहीं रहा उदाहरण के लिए उत्तरी यूरोप में रेंडियर के
शिकार पर लोग  आश्रित थयूरोप में सबसे पहले गेहूं और जौ की खेती और मवेशी
तथा सूअर पाले जाने के प्रमाण 9000 b.p में गिरीश  में मिलता है
चीन 
 चीन में कैसे की शुरुआत दो संस्कृतियों के आधार पर पहचानी जाती है
1. यंग- शाओ 6000b.p 2. लूंग- शान 5200 b.p.यह एक मिश्रित अर्थव्यवस्था थी
जिसमें शिकार, मछली मारना, भोजन संग्रहण, बाजरा, और बाद में गेहूं की खेती,
कुत्ते और सूअर को पालना और सीमित मात्रा में मवेशी, भेड़ और बकरी का पालना शामिल था,
रेशम के कीड़े को पालने के लिए शहतूत के पेड़ का उपयोग किया जाता था
 लूंग- शान 5200 b.p - यहां मुख्य रूप से बाजरा, गेहूं, चावल, सोयाबीन की खेती,
और मुर्गी, भेड़ और मवेशियों को पाला जाता था 

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