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नवपाषाण क्रांति || MHI 01

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unit - 4    mhi 01    नवपाषाण क्रांति

·         खानपान के तरीके में बदलावनवपाषाण जीवन में मनुष्य के खानपान की आदतों में बदलाव आया पुरापाषाण युग में लोग मांस खाया करते थे वही नवपाषाण युग में वह मुख्य अनाज खाया करते थे यूरोप में गेहूं और जो, पूर्वी एशिया में चावल अफ्रीका में बाजरा, अमेरिका में मक्का पाया जाता था. कृषि और पशुधन पर आधारित अर्थव्यवस्था का विकास हुआ मवेशियों को पालने से खाने पीने के तरीके पूरी तरह बदल गए दूध से बने पदार्थ दूध भी इसमें शामिल हो गया शाकाहारी भोजन को प्राथमिकता मिलने से नमक की जरूरत बढ़ गई और इसका व्यापार होने लगा

·         बसने के तौर तरीकेपौधे उगाए जाने और जानवरों को पाले जाने मैं महत्वपूर्ण परिवर्तन आए, कृषि उत्पादन से लोग एक जगह टिक कर रहने लगे पुरापाषाण और मध्य पाषाण युग के दौरान देशांतर एक जगह से दूसरी जगह जाकर रहते थे,11000 b.p  के आसपास तुर्की में आरंभिक नवपाषाण गांव थे जो जंगल भोजन संग्रह पर आधारित है कुछ समय गुजरने के बाद बसने के तरीके बदल गए, जनसंख्या बढ़ रही थी नवपाषाण युग में बस्तियों की संख्या और कब्र की संख्या मैं तेजी से वृद्धि हुई.
·         क्षेत्र में बसने के कारण जमीन का स्तर ऊपर उठता चला गया और खुदाई करने पर बसने के सबूत प्राप्त हुए हैं  PPNB चरण के आरंभ से ही जेरिको में आयातकार घर मौजूद थे, 9 फीट गहरा और 10 फीट चौड़ा एक गड्ढा मिला है जो पत्थर को काटकर बनाया गया है इसमें चारों और पत्थर की दीवारें और मीनारें बनी हुई है मधुमक्खी की छत्ता की तरह यहां झोपड़ियां बनी हुई है.
·          लगभग 8000 से 7000 वर्ष पहले कताल हुयूक  की नवपाषाण बस्ती लगभग 32 एकड़ में फैली हुई थी,यहाँ पर धूप में सुखाएं गई ईटों से घर बनाए गए थे घरों की नींव भी कच्ची मिट्टी की ईंटों से बनाई गई थी घर आयताकार थे और इनमें एक छोटा सा भंडारगृह भी था, यहाँ घर एक दूसरे से सटे थे घर में छत से होकर प्रवेश मिलता था जिस पर सीडी लगाकर चढ़ा जा सकता था*

  •  औजार - अलग-अलग कामों के लिए अलग-अलग औजारों की जरूरत पड़ती है खेती के लिए जमीन तैयार करने के लिए खंती और फावड़े जैसे औजार पहले बनाए गए फसल को काटने के लिए चाकू और हंसिया का इस्तेमाल किया जाता था यह  औजार सख्त पत्थरों से बनाए गए थे, लकड़ी काटने के लिए कुल्हाड़ी का इस्तेमाल किया जाता था इन्हें खूब चिकना बनाया जाता था इन औजारों को चमकाने के लिए पत्थरों का इस्तेमाल किया जाने लगा, हंसिया में छोटे छोटे दांत बने होते थे तथा उसमे लकड़ी का टुकड़ा लगा होता था लावा कांच के बने औजार का भी प्रयोग किया जाता था जिसकी धार बहुत तेज होती थी कुल्हाड़ी जैसे औजारों की धार को पत्थर पर रगड़ कर चिकना किया जाता था कुल्हाड़ी जितनी तेज और चमकदार होगी उतनी ही तेजी से पेड़ काटेगी, चकमक या लावा कांच को नुकीली हड्डिया सख्त लकड़ी पर घिस कर चमकाया जाता था

  • मिट्टी के बर्तन बनाना और बुनाईचिकनी मिट्टी एक ऐसी वस्तु थी जिससे फर्श, खिलौने और अन्य शिल्प वस्तुओं के निर्माण के लिए इसका उपयोग किया गया, आग से चिकनी मिट्टी को कड़ा किया जाता था और इससे कटोरा और अन्य प्रकार के बर्तन बनाए जाते थे, धीरे-धीरे मध्य पाषाण कालीन मिट्टी के साधारण बर्तनों की अपेक्षा नवपाषाण कालीन मिट्टी के बर्तन अधिक चलते गए,सबसे पहले पश्चिम एशिया के कुम्हार ने बर्तनों को पत्थर से चमकाना शुरू किया, पहले किसी गोलार्ध वस्तु की सहायता से बर्तन के तल को तैयार किया जाता होगा और इसके ऊपर मिट्टी के गोल रिंग 1 के ऊपर 1 बिठाकर इसे बर्तन का आकार और ऊंचाई दी जाती होगी आरंभिक मिट्टी के बर्तनों को या तो धूप में सुखाया जाता था या फिर घर के चूल्हा का उपयोग किया जाता था इस काम के लिए भट्टी के उपयोग का कोई प्रमाण नहीं मिलता है
  •  अधिकांश नवपाषाण समाज में मिट्टी के बर्तन और बुनाई का संबंध कृषि के साथ जुड़ा हुआ था, आग में पकाने से मिट्टी कड़ी हो जाती है, सेरामिक बर्तन बनाना ज्यादा कठिन था इसके लिए मिट्टी को साफ करना पड़ता था इसमें भूसा, पत्थर या सीपी के छोटे टुकड़े मिलाने पडते थे, ताकि आग में पकाते समय इसमें दराद ना आए ऐसे बर्तन को मोड़ कर दिया जाता था, सबसे पहले मिट्टी के बर्तन बनाए गए परंतु सभी अर्थव्यवस्था पर यह बात लागू नहीं होती,आरंभ में चिकनी मिट्टी का बर्तन हाथ से बनाए जाते थे परंतु छठी शताब्दी में  कुम्हार के चाक से पश्चिम एशिया जैसे स्थानों में बेहतरीन बर्तन बनाए जाने लगे, शिल्प और आकार में धीरे-धीरे परिवर्तन हुआ इस प्रकार यह बर्तन किसी खास संस्कृति की पहचान बन गए,अनातोलिया(आधुनिक तुर्की) में अंडाकार कटोरा,हत्था लगा मर्तबान और चिकने तल वाला बर्तन,आदि 
  •  चीन मैं लगभग 7100 से 4900 मैं भट्टी मिली है जिससे यह पता चलता है कि यहां उच्च तापमान पर लाल बर्तन पकाए और बनाए जाते थे यहां हाथ के बने मिट्टी के कई बर्तन मिले हैं जैसे कटोरा, मर्तबान आदि 
  • कई शिकारी-संग्रह समाज मिट्टी के बर्तन बनाते थे और पत्थर के औजार भी बनाया करते थे जबकि कई ऐसे खेतिहर समुदाय भी थे जो इन दोनों में से कुछ भी नहीं करते थे, दक्षिण पश्चिम एशिया के अन्य स्थानों में 4300 b.p  के मिट्टी के बर्तन और 3200 b.p  के पत्थर की चिकनी कुल्हाड़ी मिली है जमीन खोदकर बनाएं गड्ढों में अनाज सुरक्षित रखा जाता था,मिस्र में 6300 b.p  के आसपास के बने गड्ढे मिले हैं जिनमें गेहूं और जो जैसे अनाज सुरक्षित रखे जाते थे, जानवर पाले जाने से बुनाई और कतई जैसे कार्य शुरू हुए पशुओं के पालने के परिणाम स्वरूप उनके शारीरिक बनावट और खाल  आदि में बदलाव होने पर ऐसा हुआ, शुरू से भेड़ों के बाल लंबा हुआ करते थे परंतु भेड़ पालन की शुरुआत के बहुत बाद ऊनी कपड़े बनाने की शुरुआत हुई.

  • विनिमय और धातु का उपयोगआरंभिक किसान एक दूसरे पर आश्रित थे और इनके बीच उत्पादों का आदान-प्रदान हुआ करता था, खराब ना होने वाली वस्तुओं के बदले बहुमूल्य पत्थरों का विनिमय होता था उदाहरण के लिए लावा कांच से बने औजार, पूरे दक्षिण पश्चिम एशिया में पाए गए हैं यह बहुत सख्त होता है और उसकी धार बहुत तेज होती है 30000 वर्ष पहले इसका उपयोग खुरचनी और चाकू बनाने के लिए किया जाता था, लावा कांच ज्वालामुखी के क्षेत्र में पाया जाता है जैसे इटली के आसपास के क्षेत्र आदि, हजारों मील दूर इन पदार्थों का प्राप्त होना इस बात का प्रमाण है कि उस जमाने में बड़े पैमाने पर विनिमय हुआ करता था
  • 10000 वर्ष पहले लावा कांच का व्यापार शीशा पिंड या टुकड़ों के रूप में हुआ करता था.अनातोलियो मे लावा कांच की अपेक्षा, चकमक का इस्तेमाल ज्यादा होता था. इसे पैदल या टिगरिस  नदी के रास्ते नाव से लाया जाता था, पश्चिम एशिया और भूमध्य सागर क्षेत्र के किसान चकमक और ग्रीन स्टोन जैसे बहुमूल्य पत्थरों का आदान-प्रदान करते थे इस प्रकार कोई भी नवपाषाण युगीन समुदाय पूरी तरह आत्मनिर्भर नहीं था प्रमुख रुप से अनाज, शिकार और वनों से प्राप्त होने वाले सामान तथा ऐसो आराम की वस्तुओं का लेन-देन और विनिमय होता था 
  • पश्चिम एशिया में 10000 वर्ष पहले से ही तांबे जैसी धातु का उपयोग होने लगा था, हालांकि तांबे ने पत्थर और लावा कांच को पूरी तरह नहीं हटाया पश्चिम एशिया में तांबा प्रचुर मात्रा में उपलब्ध था,शुरू में तांबे को पत्थर के हथौड़े से पीटकर औजार बनाया जाता था, यह साधारण गहने और अंगूठियां तथा छोटे और औजार बनाया करते थे, दूसरे चरण में इसे ऊंचे तापमान पर गर्म किया जा सकता है पिघलाया जा सकता है और सांचे में डालकर आकार भी दिया जा सकता है तांबे से बने साधारण गहनों का पहला प्रमाण जगरोस पहाड़ियों की शानदार गुफाओं से प्राप्त होता है जहां 11वीं शताब्दी b.p  के बीच ऐसे काफी गहने प्राप्त हुए हैं, और जहां-जहां तांबे का सामान मिला है वहां सब जगह तांबा नहीं पाया जाता

  •  निष्कर्ष - नवपाषाण क्रांति के दौरान नए प्रकार के औजारों का अविष्कार हुआ नवपाषाण एक लंबी प्रक्रिया है जिसकी शुरुआत लगभग 15700 वर्ष पहले हुई थी, लगभग 12750 वर्ष पहले इसमें तेजी आई और 11000 वर्ष के आसपास पश्चिम एशिया में पेड़ पौधे लगाए जाने और पशु पालने से इसका पूर्ण विकास हुआ 


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