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Showing posts from January, 2020

मुझे कदम-कदम पर (गजानन माधव मुक्तिबोध)

2nd chapter मुझे कदम-कदम पर (गजानन माधव मुक्तिबोध)  पाठ का सार -  कवि किसी गहन विषय पर लिखना चाहता है परंतु जैसे ही वह अपनी दृष्टि चारों तरफ डालता है तो उसे एक नहीं अनेक ऐसे विषय दिखाई दे जाते हैं जिन पर लिखा जा सकता है वह सभी विषयों को टटोलना चाहता है ताकि उनमें से उसे कोई ऐसा विषय मिल जाए जिस पर वह लिख सके इसलिए उसे प्रत्येक पत्थर में हीरा नजर आता है इसके साथ-साथ वह यह भी पता है कि ऊपर से सुखी दिखाई देने वाला व्यक्ति अंदर से किसी न किसी महापीड़ा से दुखी है  वह उन सभी व्यक्तियों की समस्या को सुनना चाहता है और स्वयं जाकर उनसे मिलता है परंतु आज का मनुष्य इतना स्वार्थी हो गया है कि वह स्वयं तो पीड़ा से घिरा रहना चाहता है परंतु किसी अन्य से बातचीत कर अपने मन को हल्का नहीं करना चाहता, कवि समाज की समस्याओं को कहानी के रूप में संजोकर जब आगे बढ़ता है तो वह पाता है कि इन सब को मिलाकर तो एक उपन्यास रचा जा सकता है क्योंकि इनमें दुख की कथाएं, शिकायत, किस का अहंकार, किसी का चरित्र, कुरान की सुर, आदि भी सुनने को मिलती हैं कभी जब इन अनुभवों को लेकर आगे बढ़ता है तो प...

पुनर्जागरण और व्यक्तिवाद || unit 1 इकाई 1 || MHI - 02

unit 1 इकाई 1   पुनर्जागरण और व्यक्तिवाद     परिचय -   रीनेसा इतालवी शब्द है   जिसका अर्थ है पुनर्जन्म ,( फिर से जागना )  यूरोप में 14 वी से 17 वी शताब्दी के बीच हुई सांस्कृतिक हलचल को पुनर्जागरण कहा जाता है यह सदी इसलिए पुनर्जागरण का युग माना जाता है क्योंकि इस शताब्दी में यूरोप में ना सिर्फ कला और साहित्य को , बल्कि बौद्धिक एवं सामाजिक जीवन में अनेक पहलुओं को पुनर्जीवित किया गया,   यह शीघ्र ही संपूर्ण यूरोप में फैल गया वास्तव में पुनर्जागरण ने मध्ययुगीन धर्म और परंपराओं से चिंतन को मुक्त कर के तर्क को बढ़ावा दिया इसने साहित्य , विज्ञान , और मानव के प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित किया पुनर्जागरण काल में मुख्यतः मानवतावाद , व्यक्तिवाद , धर्मनिरपेक्षतावाद जैसी महत्वपूर्ण प्रगति यूरोपीय इतिहास में हुई   लियोमंड के शब्दों में पुनर्जागरण वह आंदोलन है जिसके द्वारा पश्चिम के राष्ट्रीय मध्य से निकालकर आधुनिक युग में प्रवेश हुए...