unit 1 इकाई 1 पुनर्जागरण और व्यक्तिवाद
परिचय - रीनेसा इतालवी शब्द है जिसका अर्थ है पुनर्जन्म,(फिर से जागना) यूरोप में 14वी से 17वी शताब्दी के बीच हुई सांस्कृतिक हलचल को पुनर्जागरण कहा जाता है यह सदी इसलिए पुनर्जागरण का युग माना जाता है क्योंकि इस शताब्दी में यूरोप में ना सिर्फ कला और साहित्य को, बल्कि बौद्धिक एवं सामाजिक जीवन में अनेक पहलुओं को पुनर्जीवित किया गया, यह शीघ्र ही संपूर्ण यूरोप में फैल गया वास्तव में पुनर्जागरण ने मध्ययुगीन धर्म और परंपराओं से चिंतन को मुक्त कर के तर्क को बढ़ावा दिया इसने साहित्य, विज्ञान, और मानव के प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित किया पुनर्जागरण काल में मुख्यतः मानवतावाद, व्यक्तिवाद, धर्मनिरपेक्षतावाद जैसी महत्वपूर्ण प्रगति यूरोपीय इतिहास में हुई
लियोमंड के शब्दों में पुनर्जागरण
वह आंदोलन है जिसके द्वारा पश्चिम के राष्ट्रीय
मध्य से निकालकर
आधुनिक युग में प्रवेश हुए दूसरे शब्दों में पुनर्जागरण
की सबसे बड़ी विशेषता
है कि इसने मानव बुद्धि को धर्म के ठेकेदारों
से मुक्त करवाया और एक नई चेतना को जन्म दिया
पुनर्जागरण के विचार का आरंभ - 15-16वी शताब्दी
में जिस नवीन चेतना का जन्म हुआ वह अचानक शुरू नहीं हुई थी बल्कि पिछले कई शताब्दियों
से पहले भी समय-समय पर इसके विचार के उदाहरण हमें मिलते हैं पुनर्जागरण
से पहले हमें कम से कम दो आंदोलन के उदाहरण मिलते हैं 1. नौवीं शताब्दी
का कैथोलिक
पुनर्जागरण
2. 12वीं शताब्दी का पुनर्जागरण थीथ के अनुसार - यूरोप में पुनर्जागरण की शुरुआत अचानक नहीं हुई थी बल्कि इसके पीछे अनेक घटनाएं कार्य कर रही थी इन सबने मिलकर यूरोप में एक नई सभ्यता को एक नया मोड़ दिया जिसे पुनर्जागरण कहा जाता है पुनर्जागरण के कारण व्यापार और शहरी जीवन का उदय हुआ जिसने धर्मनिरपेक्षता की भावना को बल प्रदान किया धर्मनिरपेक्षता की भावना ने धार्मिक एवं सामाजिक बंधनों से मानव को मुक्त किया तथा साहित्य कला एवं संस्कृति को एक नई स्वतंत्र दिशा मिली इस नई संस्कृति ने व्यक्तिवाद को बढ़ावा दिया
नए समूह : वकील और नोटरी - जिस समाज में वाणिज्य
व्यापार
ही मुख्य रूप से होने लगा वहां सबसे महत्वपूर्ण
शिक्षित
समूह वकील और नोटरी हो जाते हैं वही नियम कानूनों
और समझौते लिखते तथा उनकी व्याख्या
करते हैं यूरोप में 11 वीं शताब्दी
में राजनीतिक
उथल-पुथल थी उसी के फलस्वरुप
इटली में वाणिज्य
और शहरों में वृद्धि हुई इस परिवर्तन
के कारण राजनीतिक
शक्ति केंद्र पादरियों
और कोलिन सामंतों
के हाथ से निकल कर धनी शहरी व्यापारियों
के हाथ में आ गया था इस परिवर्तन
के साथ ही नए सामाजिक
समूह वकील तथा नोटरी का उदय हुआ
मानवतावाद
- 19वीं शताब्दी के बाद इतिहासकार इस नई संस्कृति को मानवतावाद कहने लगे पुनर्जागरण युगीन लेखन में यह शब्द कहीं दिखाई नहीं पड़ता इस शब्द की मौजूदगी मानव अध्ययन के रूप में मिलती है 15वी सताब्दी में मानवतावादी शब्द का अभिप्राय ऐसे अध्यापकों से हो गया जो व्याकरण, कविता, इतिहास और नीति दर्शन जैसे विषय पढ़ाया करते थे पुनर्जागरण के दृष्टिकोण का सबसे महत्वपूर्ण आधार था मानवतावाद ,उनका मानना था कि केवल मनुष्य ही अपने स्वयं के विषय में यह ज्ञान अर्जित कर सकता है मानवतावाद को पुनर्जागरण के युग में एक नया जीवन दर्शन अथवा लौकिक अर्थों में मानवीय स्वभाव का गौरव समझा गया परंतु इसकी सटीक परिभाषा नहीं दी गई
पेट्रक - के अनुसार मानवतावाद
प्राथमिक
विशेषता
के आधार पर व्यक्तिवाद
का उच्च बोध तो है ही साथ ही उससे भी बढ़कर एक नए प्रकार का उभरता हुआ इतिहास भी इसमें दिखाई पड़ता है
नई शिक्षा - पुनर्जागरण
को एक बौद्धिक
आंदोलन भी कहा जा सकता है इसके माध्यम से शिक्षा एवं ज्ञान के क्षेत्र
में एक तीव्र गति देखने को मिलती है पेट्रक
- का मानना था कि नई शिक्षा का आधार दर्शनशास्त्र होना चाहिए, मध्यकालीन और पुनर्जागरण युगीन इटली में तीन तरह के स्कूल थे 1. पढ़ाई ऐसे स्वरोजगार शुदा अध्यापकों द्वारा चलाई जाती थी जो पढ़ाई के लिए पैसे देने वाले बच्चों को पढ़ाते थे 2. कभी अकेले कभी एक और सहयोगी के साथ मिलकर वे तमाम विषय पढ़ाते थे जिनके लिए बच्चे के माता-पिता पैसे दे 3. उत्तरी इटली में सरकार किसी अध्यापक को चुनकर उसे पैसा देकर पढ़ाई कराती थी और सामुदायिक स्कूल 13वीं शताब्दी में सामने आए पेट्रक ने शिक्षा के ऐसे कार्यक्रम तैयार किए जिसमें व्याकरण, कविता, नीति और इतिहास जिनके जरिए आदर्श को प्राप्त किया जाता था
छपाई - छपाई की नई कला भी मानवतावाद को प्रभाव बढ़ाने में मददगार साबित हुई सन 1500 में अनेक रचनाएं इटली में लैट्रिन में छप गई थी छपाई के कारण किताबों के नए मानक तैयार हुए उनके प्रचार प्रसार में भी बड़ी आसानी हुई,छपाई के पहले किताबे कम ही संख्या में थी छपाई से उनकी संख्या बढ़ गई और किताबों की कीमत भी कम हो गई मुद्रण कला के अविष्कार से सस्ते मूल्य पर विभिन्न भाषाओं में पुस्तकों का प्रकाशन होने लगा
धर्मनिरपेक्षता
की शुरुआत - पुनर्जागरण के कारण मानवतावाद के केंद्र में आ जाने से धर्मनिरपेक्षता की शुरुआत हुई पुनर्जागरण के परिणाम स्वरूप लोग जीवन पर धर्म का नियंत्रण कमजोर हुआ मानवतावाद धर्मनिरपेक्ष नैतिकता को जन्म दे रहा था धर्मनिरपेक्षता से हम चर्च के नियंत्रण से समाज, साहित्य, कला, संस्कृति आदि की मुक्ति के प्रयास का भी अर्थ लगाते हैं मानवतावाद
ने रूढ़िवाद
को तो चुनौती दी लेकिन इस आई विश्वास
या कैथोलिक
को यह चुनौती नहीं दी गई इटली के प्रभावशाली
लोगों की धर्मनिरपेक्ष
नैतिकता
के प्रति आस्था थी 15-16 वीं शताब्दी में विचारको ने एक नई मानवतावादी संस्कृति को आकार दिया जिसने मध्ययुगीन धर्म और परंपराओं से चिंतन को मुक्त करके तर्क को बढ़ावा दिया इसने मनुष्य के संबंध में एक नया दृष्टिकोण विकसित किया पुनर्जागरण ने नई किताबों के मुद्रण को प्रेरणा दी इन किताबों का विषय मानव का अध्ययन था
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