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मुझे कदम-कदम पर (गजानन माधव मुक्तिबोध)

2nd chapter मुझे कदम-कदम पर (गजानन माधव मुक्तिबोध) 


पाठ का सार -  कवि किसी गहन विषय पर लिखना चाहता है परंतु जैसे ही वह अपनी दृष्टि चारों
तरफ डालता है तो उसे एक नहीं अनेक ऐसे विषय दिखाई दे जाते हैं जिन पर लिखा जा सकता है
वह सभी विषयों को टटोलना चाहता है ताकि उनमें से उसे कोई ऐसा विषय मिल जाए जिस पर
वह लिख सके इसलिए उसे प्रत्येक पत्थर में हीरा नजर आता है इसके साथ-साथ वह यह भी पता
है कि ऊपर से सुखी दिखाई देने वाला व्यक्ति अंदर से किसी न किसी महापीड़ा से दुखी है  वह
उन सभी व्यक्तियों की समस्या को सुनना चाहता है और स्वयं जाकर उनसे मिलता है परंतु
आज का मनुष्य इतना स्वार्थी हो गया है कि वह स्वयं तो पीड़ा से घिरा रहना चाहता है परंतु
किसी अन्य से बातचीत कर अपने मन को हल्का नहीं करना चाहता, कवि समाज की समस्याओं
को कहानी के रूप में संजोकर जब आगे बढ़ता है तो वह पाता है कि इन सब को मिलाकर तो एक
उपन्यास रचा जा सकता है क्योंकि इनमें दुख की कथाएं, शिकायत, किस का अहंकार, किसी
का चरित्र, कुरान की सुर, आदि भी सुनने को मिलती हैं कभी जब इन अनुभवों को लेकर आगे
बढ़ता है तो पाता है कि यदि 100 बरस भी जीने का मौका मिले तो भी इन समस्याओं पर लिखना
समाप्त नहीं होगा इसके साथ साथ घर पर भी समस्याओं का अंबार उसके सामने नजर आता है,
अंत में कवि निष्कर्ष निकालता है कि आज जमाने में रचनाकार के पास लिखने के लिए विषयों
की कमी नहीं है विषयों का अंबार है परंतु समस्या यह है कि उन्हें सारी समस्या में से किस ऐसे
विषय पर लिखे जिसका समाज को उचित लाभ मिल सके


प्रतिपाध - कविता ‘मुझे कदम कदम पर’ मुक्तिबोध के काव्य संग्रह ‘चांद का मुंह टेढ़ा है’  से ली
गई है यह कविता दिसंबर 1961 में ‘ चौराहे’ शीर्षक से ‘लहर’ में प्रकाशित हुई थी


1. विषय का भटकाव - कभी भटक गया है कि वह किस विषय पर लिखें जब वह लिखने की सोचता
है तो उसे  एक ही विषय पर कई उप - विषय दिखाई देते हैं जो सभी महत्वपूर्ण नजर आते हैं और
कवि को भटकाते हैं वह किस विषय पर लिखे और किस विषय पर ना लिखें,कवि को सारे विषय
अच्छे लगते हैं और उन सभी विषयों पर लिखना चाहता है उन की गहराइयों में जाकर तथ्य
निकालना चाहता है 


2. विषय की पहचान - कवि को भ्रम है कि साधारण से साधारण दिखाई देने वाला व्यक्ति अपने
किसी ना किसी गुण के कारण हीरे के समान है साथ ही यह भी महसूस करता है कि प्रत्येक प्राणी
की वाणी में कुछ न कुछ पीड़ा अवश्य है चाहे वह दिखाएं या ना दिखाएं कवि उन सभी पीड़ा को
गहराई में जाकर अनुभव करना चाहता है जब वह जगह जगह घूमता है तो वह कहीं थका भी
जाता है परंतु वह उसे बुरा नहीं मानता


3. विश्व का अधिकय - जब कवि बहुत सारी राहों से गुजर कर विभिन्न विषय जमा कर लेता है तो
उसके पास इतनी सामग्री इकट्ठी हो जाती है कि वह उस पर उपन्यास लिख सकता है इन विषयों में
कहीं दुख की कथाएं हैं कहीं शिकायतें हैं, कहीं प्यार की बातें हैं. इन सब को एक जगह करके कवि
को लगता है कि अभी उसे 100 बरस तक और जीना पड़ेगा क्योंकि इतने सारे विषय जमा हो गए हैं
कि उन पर लिखते लिखते जीवन छोटा पड़ जाएगा  घर आकर भी कभी को और विषय मिल जाते
हैं जो बाहें फैलाए बैठे हैं कि कवि आए और उन पर लिखें

4. निष्कर्ष -  इस प्रकार कभी अध्ययन करके देखता है कि आजकल रचनाकार के पास लिखने के
लिए अनेक विषय हैं विषय की कमी नहीं है परंतु समस्या केवल सही विषय चुनने की है इस प्रकार
सही विश्व का चुनाव करने का काम इतना काम के लिए बहुत ही कठिन कार्य बन जाता है 

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