12. वह जो यथार्थ था अखिलेश
सार-
वह जो यथार्थ था अखिलेश का एक निबंध है। कस्बोें में मनोरंजन के
नियमित साधन नहीं होते इस बात को लेखक अपने बचपन की यादों से
जोड़ता है। लेखक का स्वयं जिस कस्बें में बचपन बीता वहाँ कभी-कभार
ही मनोरंजन के साधन जुटते थे और उनमें सबसे बड़ा मनोरंजन का स्रोत
थी रामलीला मनोरंजन के अन्य साधनों में नौटंकी, कठपुतली का नाच
और जादू था। रामलीला और कठपुतली का नाच रामलीला वाले बाग में
होता था परन्तु नौटंकी एवं जादू, जैसे आयोजन किसी अन्य जगह होते
थे। इसका कारण सम्भवत: यह था कि नौटंकी और जादू में टिकट
लगता था मानो कहते हो कि गरीब और अमीर सभी को नौटंकी और
जादू जैसे मनोरंजन देखने का समान हक है।
लेखक तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की जनसभा का वर्णन
करते हुए कहता है कि उनकी सभा के लिए इतनी भीड़ जुटी जितनी न
कभी नौटंकी में, न जादू में और न रामलीला या कठपुतली का नाच
में जुटी। तिल भर की जगह वहाँ नहीं थी। वे तो यहाँ तक कहते हैं कि
मध्यमआकार का आलू तक भी भीड़ में फँस जाता। लेखक उस समय
स्वयं एक बच्चा था परन्तु आज लेखक को यह सोचकर अचरज होता है
कि उस राजनीतिक सभा में बच्चे क्या कर रहे थे। क्या वह भी उनके लिए मनोरंजन का साधन था।
लेखक के अनुसार कस्बे में मनोरंजन के अन्य साधन भी थे जैसे साँप
और नेवले की लड़ाई, बन्दर का नाच अथवा भालू का नाच। किसी लड़के
को चादर से ढककर उसके द्वारा किसी की कमीज के बटनों की संख्या
बताना, भूत, वर्तमान और भविष्य बतलाना भी इसी प्रकार के मनोरंजन
के साधन थे परन्तु इनके लिए मनोरंजन एक बहाना था मुख्य उद्देश्य
था अपना सामान बेचना जैसे आजकल टी.वी. के कार्यक्रम या सौन्दर्य
प्रतियोगिताएँ वस्तु-विशेष की बिक्री को बढ़ाने का साधन हैं। सभी
मनोरंजन के साधनों में लेखक रामलीला को सर्वश्रेष्ठ मानता है क्योंकि
उसमें कोई पैसा नहीं लगता और वह कई - कई दिन तक घंटे चलती है।
लेखक कहता है कि नौटंकी के प्रति आकर्षण का मुख्य कारण था कि
उसमें महिलाओं का चरित्र महिलाएँ ही निभाती थीं। इसलिए उनके डेरे के
आस-पास वयस्कों और बच्चों की भीड़ लगी रहती थी।
लेखक एक प्रश्न भी करता है कि बच्चों के लिए खेल क्या मनोरंजन का
साधन है ? वस्तुत: बच्चों के लिए खेल मुक्ति है। खेलते हुए वे बड़ों की
गुलामी और अनुशासन के दमन से आजाद हो जाते हैं। बड़े लोगों का
खेल मनोरंजन है परन्तु बच्चों का खेल आनन्द है। यह आनन्द
स्वाभाविक होता है। आनन्द भी भिन्न-भिन्न प्रकार का होता है
। संगीत, चित्राकला, वास्तुकला का आनन्द और वे भी गाने वाले, बजाने
वाले की भिन्नता के साथ ही अलग-अलग हो जाते हैं। बच्चों के खेल का
आनन्द गुलामी से अवकाश का आनन्द है स्त्रिया भी पुरुषों
की उपस्थिति से दूर होकर ही मुकित का अहसास करती हैं और
आनन्दोत्सव मनाती हैं।
लेखक प्रश्न करता है कि क्या दलित भी आनन्दोत्सव मनाते हैं? उनकी
जाति-बिरादरी में जो सामूहिक उत्सव होते हैं, उनमें खाना और शराब
पाने मात्रा से ही उनको आनन्द मिल जाता है। आनन्द की वास्तविक
अनुभूति के लिए वर्तमान की चेतना अनिवार्य है फिर शहरों और गाँव-
कस्बों के दलितों की स्थिति में भी पर्याप्त अन्तर होता है।
आनन्द और मनोरंजन के अन्तर को भी जानना होगा। आनन्द आपके
अस्तित्व को प्रभावित करता है। मनोरंजन का प्रभाव मस्तिष्क पर
अधिक होता है। मनोरंजन में गति होती है और आनन्द में मंथन।
मनोरंजन एक चमक पैदा करता है और आनन्द ऊर्जा।
कुछ स्थान भी अपने स्थापत्य, सुषमा, शान शौकत, पार्क, मंदिर,
पिक्चर हाल आदि के कारण मनोरंजन का साधन होते हैं। लेखक कहता
है कि मेरे कस्बे में मनोरंजन के कोई साधन नहीं है परन्तु जीवन की
छोटी-छोटी घटनाओं में ही गाँव के निवासी मनोरंजन खोज लेते हैं।
विज्ञापन के इश्तहारों एवं होडिग में भी गाँव कस्बों के लोग मनोरंजन
हासिल कर लेते हैं। परन्तु यह भी सत्य है कि मनोरंजन की समस्या मेरे
बचपन से लेकर आज तक कस्बे में बनी हुई है।
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