इकाई --
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बालक : एक विशिष्ट ( असाधारण) व्यक्ति के रूप में
बालक :
व्यक्तिगत एवं संदर्भित
आयाम
इसमें एक बच्चे के रूप मै ना समझ कर उसे एक असाधारण व्यक्ति के रूप में समझने का प्रयास किया जाएगा बालक के व्यक्तिगत आयामो
1.अभिप्रेरणा(MOTIVATION)
2.आत्मा संप्रत्यय(CONCEPT
LEARNING)
3.आवश्यकता
(NEEDS) 4. अभिवृत्ति (मन :स्थिति)
5. अभिरुचि (शौक,interest) 6. बुद्धि.
1. अभिप्रेरणा (MOTIVATION)
विद्यालय जाने के पीछे शिक्षा ग्रहण करके जीवन में सफलता हासिल करना एक अभिप्रेरणा है दूसरे शब्दों में अभिप्रेरणा एक आंतरिक स्थिति है जो मनुष्य के इच्छित व्यवहार को जगाती है किसी कार्य को करना या ना करना किसी कार्य को सीखना या ना सीखना अभिप्रेरणा पर ही निर्भर करता है सीखने की प्रक्रिया में अभिप्रेरणा का महत्व इतना अधिक है कि विद्वानों ने इसे सीखने का ह्रदय तक कहा है
अभिप्रेरणा का अर्थ व परिभाषा
Ø मनोवैज्ञानिक अर्थ में अभिप्रेरणा से हमारा अभिप्राय केवल आंतरिक उत्तेजना से है जिन पर हमारा व्यवहार आधारित होता है दूसरे अर्थ में अभिप्रेरणा वास्तव में व्यक्तियों के भीतर स्थित होती है अभिप्रेरणा कोई ऐसी चीज़ नहीं है जिसे शिक्षक जब चाहे तब बालक में पैदा करते और तब चाहे उसे समाप्त कर दें
Ø रीली एवं लेविस के अनुसार अभिप्रेरणा एक ऐसा बल है जो व्यक्ति के भीतर से उत्पन्न होता है ना कि कुछ ऐसी चीज जिसे शिक्षक छात्र में अपनी ओर से पैदा करते हैं गुड़ के अनुसार अभिप्रेरणा कार्य को प्रारंभ करने जारी रखने और नियमित करने की प्रक्रिया है जिसमें सीखने वाले की आंतरिक शक्तियां या आवश्यकताएं उसके वातावरण में विभिन्न लक्ष्य की ओर निर्देशित होती हैं
Ø अभिप्रेरणा का संबंध उन कारणों से है जो व्यक्ति की क्रिया का बल बढ़ाते या घटाते हैं मनोविज्ञान में हम अभिप्रेरणा को एक काल्पनिक आंतरिक प्रक्रिया के रूप में परिभाषित करते हैं जो व्यवहार करने के लिए शक्ति प्रदान करता है अभिप्रेरणा व्यक्ति की आंतरिक अवस्था को कहा जाता है अभिप्रेरणा व्यक्ति की एक विशिष्ट स्थिति होती है जो उसे एक निश्चित लक्ष्य की ओर निर्देशित करती है
अभिप्रेरणा के प्रकार -
दो प्रकार की होती है
1. आंतरिक 2. बाहय
1. आंतरिक - बालक किसी कार्य को अपनी इच्छा से ही करता है और उस कार्य को करने के बाद बालक को खुशी और संतोष प्राप्त होता है इसे प्राकृतिक अभिप्रेरणा या आंतरिक अभिप्रेरणा या प्राथमिक अभिप्रेरणा भी कहते हैं छात्रों को स्वयं ही प्रोत्साहन मिलता है
2. बाहय - इस प्रकार की अभिप्रेरणा को अप्राकृतिक अभिप्रेरणा भी कहते हैं इस प्रकार की अभिप्रेरणा का संबंध किसी व्यक्ति से ना होकर बाहय
वातावरण या अन्य किसी व्यक्ति की इच्छा से होता है जैसे परीक्षा परिणाम, पुरस्कार, दंड, प्रशंसा आदि
अभिप्रेरणा के स्रोत
1.आवश्यकता 2. चालक 3. प्रोत्साहन
1.आवश्यकता -
जैविक और सामाजिक
दो तरह की आवश्यकता होती है भोजन जल नींद
आदि जैविक आवश्यकताएं हैं दूसरों से संबंध बनाना, शिक्षा ग्रहण करना आदि को समाजिक
आवश्यकता में शामिल किया जाता है जैविक आवश्यकता
पूरी ना होने पर मनुष्य का जीवन खतरे में पड़ सकता है मनोवैज्ञानिकों ने आवश्यकता को अभिप्रेरणा
की उत्पत्ति का पहला कदम बताया है
2. चालक - जो व्यक्ति में किसी चीज के प्रति आवश्यकता उत्पन्न होती है तो उस व्यक्ति में उस आवश्यकता को पूरा करने के लिए
क्रियाशीलता बढ़ जाती है इसी क्रियाशीलता को चालक कहा जाता है चालक, शरीर की एक आंतरिक किया है, जो एक विशेष प्रकार के व्यवहार के लिए प्रेरणा प्रदान करती है
3. प्रोत्साहन -
प्रोत्साहन का संबंध बाहरी वातावरण या वस्तुओं से होता है जो व्यक्ति को अपनी और आकर्षित करती है तथा जिसकी प्राप्ति से उसकी आवश्यकता की पूर्ति तथा चालक में कमी हो जाती है प्रोत्साहन बाह्य वातावरण कि कोई वस्तु होती है जो आवश्यकता की संतुष्टि करती है और इस प्रकार चालक को कम कर देती है
सीखने में अभिप्रेरणा की भूमिका
Ø बालकों के स्वस्थ प्रतियोगिता की भावना का विकास करके, उन्हें अधिक ज्ञान का
अर्जन कराने के लिए प्रेरणा प्रदान की जा सकती है
Ø बालकों को
प्रेरित करके शैक्षिक गतिविधियों में उनका ध्यान पुस्तकों पर केंद्रित करने में सहायता मिल सकती है
Ø अभिप्रेरणा बालकों के व्यवहार को एक ख़ास दिशा प्रदान करती है और बालकों के व्यवहार को लक्ष्य की ओर निर्देशित करती है
Ø बालकों को अच्छे कार्यों को करने के लिए प्रेरित कर के उनमें अनुशासन की भावना का विकास किया जा सकता है
Ø समूह में कार्य करवाना भी अभी प्रेरणा प्रदान करने की एक विधि है बालक समूह में काम करना पसंद करते हैं यदि बालकों को सामूहिक कार्य दिया जाए तो निश्चित ही उनकी कार्यकुशलता, कार्य क्षमता
व शैक्षिक अभिरुचि में वृद्धि होगी
Ø विद्यार्थियों में सीखने की आवश्यकता पैदा की जानी चाहिए विद्यार्थियों को इस बात का एहसास कराया जाना चाहिए कि जीवन में शिक्षा प्राप्त करना कितना आवश्यक है
Ø विद्यार्थियों के लिए समय समय पर उच्च शैक्षिक उपलब्धियों के लिए पुरस्कार की घोषणा करने के लिए भी विद्यार्थियों को शिक्षा ग्रहण करने के लिए या पढ़ाई में ध्यान लगाने के लिए अभी प्रेरणा मिलती है
खेल विधि का प्रयोग -
खेल विधि के द्वारा समझा जा सकता है इससे बालकों का ना केवल मनोरंजन होगा बल्कि साथ ही वह शिक्षा प्राप्त करेंगे
बालकों में आपस में स्वस्थ प्रतियोगिता का भाव उत्पन्न करके भी उन्हें शिक्षा के लिए अभीप्रेरित किया जा सकता है
2. आत्मा संप्रत्यय (concept learning) -- व्यक्ति का आत्मा संप्रत्यय यह निर्धारित करने में कि व्यक्ति विशेष को कैसे काम करेगा कैसे उसकी प्रतिक्रिया होगी और वह कैसा महसूस करेगा इन सब में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है जैसे बच्चा अपनी क्षमता का प्रयोग कितना कर पाता है
3. आवश्यकता
प्राणी को जब किसी प्रकार की कमी महसूस होती हैं तो एक आंतरिक प्रक्रिया उस कमी को दूर करके सामान लाने का प्रयास करती है इस प्रकार व्यक्ति की आवश्यकता है उसके व्यवहार के लिए शक्ति का काम करती है दूसरे शब्दों में, किसी वस्तु की कमी के अभाव को ही आवश्यकता का नाम दिया गया है वस्तु की कमी
से मानव में तनाव की स्थिति जन्म लेती है और जब तक उसकी वह हो सकता पूरी नहीं होती तब तक तनाव बना रहता है और आवश्यकता पूरी होते ही तनाव समाप्त होता है
हेनरी ने आवश्यकता को एक शक्ति कहां है -
जो प्राणी के व्यवहार को संतोषजनक स्थिति से मुक्त कराने का प्रयास करती है
आवश्यकता सिद्धांत -
इस सिद्धांत को अच्छी तरह अमेरिका के मनोवैज्ञानिक एवं दार्शनिक इब्राहिम मैस्लो ने समझा मनुष्य की आवश्यकता के क्षेत्र में इसके पूर्व जितने सिद्धांत थे, मैस्लो के सिद्धांत में लगभग सभी विचार समाहित हो गए मैस्लो ने मनुष्य की सात प्रकार की आवश्यकता में वर्गीकृत किया है मैस्लो ने आवश्यकता को एक
पिरामिड द्वारा दर्शाया है मैस्लो का विचार था कि प्रथम प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति के उपरांत दूसरे प्रकार की आवश्यकता अभीप्रेरित करने लगती हैं
2 के बाद तीसरे प्रकार की आदि मैस्लो ने मुख्य रूप से दो प्रकार की आवश्यकता आत्मा वास्तविकरण एवं ज्ञानात्मक आवश्यकता पर अधिक बल दिया है पर कुछ व्यक्तियों में सौंदर्य की आवश्यकता महत्वपूर्ण स्थान रखती है

7.सौंदर्य आवश्यकताएं
2.
सुरक्षा संबंधी आवश्यकता
4.अभिवृत्ति (मन : स्थिति)
रॉबर्ट बैरन के अनुसार
मन स्थिति व्यक्तियों, वस्तुओं, धर्म, समूह इत्यादि से आस्था भावनाओं की व्यवस्था के रूप में कार्य करती हैं | बच्चों की विभिन्न मन स्थितियां जैसे खाने के प्रति( शाकाहारी - मांसाहारी भोजन करना चाहिए या नहीं)
लिंग के प्रति स्थिति, सफाई के प्रति स्थिति, फैशन के प्रति स्थिति, समूह का हिस्सा बनने के लिए, स्वयं में परिवर्तन करना आधी को समझना विद्यालयों के अंतर्गत आता है यदि बच्चों को एक व्यक्ति के रूप में समझना है तो हमारे लिए आवश्यक है कि हम उनकी मन स्थिति के बारे में जाने ताकि बच्चों के व्यक्तित्व को ठीक प्रकार से समझा जाए
अभिवृत्ति क्या है -
किसी वस्तु के प्रति विश्वास, भाव तथा व्यवहार शामिल होते हैं
अस्थाई मन स्थितियां तथा एक बार ही घटित होने वाले व्यवहार को अभिवृत्ति नहीं कहा जा सकता अभिवृत्ति विचार, भाव तथा क्रियाएं हैं,
अभिवृत्ति निर्माण को प्रभावित करने वाले कारक
1.परिवार - माता पिता जिस तरह से बच्चे को प्रभावित करते हैं वैसी ही स्थिति निर्मित होती है बच्चे अपने माता-पिता से प्रथम जानकारी प्राप्त करते हैं, किशोर बच्चे, परिवार में बढ़ो को देख कर बहुत सी बातें को सीखते हैं बच्चे अपने माता-पिता द्वारा दी गई श्रेणियों के आधार पर दूसरे बच्चों को अच्छा या बुरा की श्रेणी में रखते हैं परिवार बच्चे के लिए सूचना का प्राथमिक स्रोत होता है
2. संदर्भ(reference) समूह - बच्चे जैसे जैसे बढ़ते हैं उन पर कई स्रोतों से अनेक प्रकार के प्रभाव पड़ते हैं वह अनेक लोगों एवं वस्तुओं के बारे में विचार बनाते हैं यह समूह बच्चों के लिए संदर्भ समूह निर्मित करता है बच्चे इन समूह में बहुत कुछ सीखते हैं जैसे व्यवसाय, सामाजिक एवं धार्मिक समूह, राष्ट्रीय नेता इत्यादि के बारे में
3. संचार माध्यमों का संपर्क -
आधुनिक जीवन में संचार माध्यमों की भूमिका महत्वपूर्ण है यह संपर्क दुनिया के बारे में जानकारी पाने का एक माध्यम है टीवी पर व्यवसायिक विज्ञापन यह बताते हैं कि हमें कौन-कौन सा उत्पादन खरीदना चाहिए और बच्चे जल्दी प्रभावित हो जाते हैं और उन पर विश्वास कर लेते हैं
5. अभिरुचि
(शौक. Interest )
अभिरुचि को लोग मनोरंजन मार लेते हैं यह जरूरी नहीं है कि जिस वस्तु में हम रुचि ले रहे हैं वह मनोरंजन ही हो जैसे यदि हम किसी बीमार की सेवा में रुचि ले रहे हैं तो उससे हमारा कोई मनोरंजन नहीं हो रहा होता है
अभिरुचि के प्रकार
चार होते हैं
1. शिक्षक द्वारा पूछे जाने पर यदि कोई बालक यह बताता है कि उसकी रुचि गणित का इतिहास में है तो इसे व्यक्ति अभिरुचि कहते हैं
2. प्रकट अभिरुचि का तात्पर्य है ऐसी अभिरुचि से है जिसकी अभिव्यक्ति कार्य
की क्रिया से होता है
3. परीक्षित अभिरुचि का तात्पर्य ऐसी सूची से हैं जिस की जानकारी व्यक्ति की उपलब्धियों के आधार पर होती है किसी बालक का सबसे अधिक अंत इतिहास में है तो इसका अर्थ यह हुआ कि उसकी अभिरुचि इतिहास में है ऐसी अभिरुचि जिसकी जानकारी मानक खोज के आधार पर होती है उसे खोज संबंधी अभिरुचि कहते हैं
अभिरुचि विकास के कारक - अभिरुचि जन्म जात नहीं होती बल्कि वातावरण के संपर्क से मिलती है लेकिन कुछ मनोवैज्ञानिक का विचार है कि अभिरुचि जन्मजात भी होती है इनके अनुसार बचपन में व्यक्ति की अभिरुचिया होती हैं और बाद में वातावरण के प्रभाव के अनुकूल विभिन्न रूप में विकसित होने लगती है
उम्र बढ़ने के साथ साथ बालकों की रूचि बदलती जाती है
शारीरिक रचना तथा स्वभाव के कारण भी दोनों की रूचि में अंतर पैदा हो जाता है लड़कों की रुचि शारीरिक कार्यों में अधिक होती है जब की लड़कियों की रुचि
अंत वारसी कार्य में होती है दोनों खेल के प्रति रुचि रखते हैं परंतु दोनों के खेल के बीच में अंतर होता है
अभिरुचि विकास पर बुद्धि का भी प्रभाव पड़ता है तीव्र बुद्धि के बालकों की रुचि जटिल कार्यों में अधिक होती है लेकिन कम बुद्धि के बाल को की अभिरुचि साधारण एवं सरल कार्यों में अधिक होती है
6. बुद्धि
Ø Jatil
को समझने,वातावरण के साथ प्रभावशाली समान स्थिति बनाने, अनुभव से सीखने, अलग अलग ढंग से सोच विचार कर सकने और बाधाओं पर विजय की योग्यता में लोग एक दूसरे से भिन्न होते हैं उन्हें हम कम या ज्यादा बुद्धिमान व्यक्ति को दो भागों में बांटते हैं बुद्धि किसी खास kriya या क्षेत्र तक सीमित नहीं होती यह प्रत्येक कार्य में होती है चाहे में विद्यालयों हो, व्यवसाय हो या कोई और क्षेत्र भिन्न-भिन्न संस्कृतियों में बुद्धि के विभिन्न पक्षों पर बल दिया जाता है
Ø बुद्धि शब्द केवल दैनिक जीवन में ही अधिक लोकप्रिय नहीं है यह मनोविज्ञान, शिक्षा एवं बाल विकास के क्षेत्र में भी इस पर विशेष ध्यान दिया गया है समझने, तर्क करने वह योग्यता, और सीखने, संबंधों को समझने की योग्यता इत्यादि
Ø साइमन ने 1905
में बुद्धि को सही निर्णय लेने, अच्छी तरह से समझने, तथा तर्क करने की योग्यता के रूप में परिभाषित किया बुद्धि के लिए चार तत्व को महत्वपूर्ण माना गया
v लक्ष्य निर्धारित करना तथा
उसके लिए कार्य करने की योग्यता,
v समस्या समाधान के लिए आवश्यक समायोजन स्थापित करने की योग्यता
v बोध या वास्तव में समस्या क्या है इसकी समझ की योग्यता,
v विचार क्या है वह समस्या के सही समाधान करने में समक्ष रहा है या नहीं
VASHLR 1939
मैं दी गई परिभाषा बहुत प्रचलित हुई उन्होंने बुद्धि को व्यक्ति की उद्देश्य पूर्ण क्रिया करने, तार्किक चिंतन करने, तथा पर्यावरण के साथ प्रभावशाली ढंग से घुल मिलने की क्षमता के रूप में परिभाषित किया है
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