Unit 4
कृषिय वैश्वीकरण तथा विकासशील देश
1980 व 1970 के दशक के दौरान महत्वपूर्ण खुले पन देखने को मिला अधिकांश विकासशील देशों में खाद उपभोग का स्तर कृषि में अल्पविकसित था कुल रोजगार और आय का बहुत बड़ा भाग कृषि क्षेत्र से आता है इसलिए इन देशों के उपभोक्ताओं के लिए का मूल्य खासा महत्वपूर्ण होता है वैश्वीकरण ने विकास के वाहक के रूप में कम विकसित देशों में की भूमिका को बढ़ाया है जिसके द्वारा उनकी घरेलू मांग में तीव्र गति से कृषि उत्पादन संभव हो सका है इससे कृषि क्षमता में वृद्धि के साथ साथ खाद्य सुरक्षा में भी वृद्धि हुई है जिससे लाभ में कई गुना वृद्धि हुई है इस तरह के लाभों के लिए सहभागिता को सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है साथ ही गरीबों एवं भूखो को भी गरीबी और भुखमरी से इस प्रक्रिया द्वारा निजात दिलाना है
1980 के दशक में अधिकांश विकासशील देशों में आए आर्थिक मंदी तथा ऋण संकट से निपटने के लिए वर्ल्ड बैंक तथा अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा लगाई गई कड़ी शर्तों के कारण इनमें अधिकांश परिवर्तन आए इन सुधार पैकेजो का मुख्य केंद्र बिंदु गरीबी ,विकासशील देशों के कृषि क्षेत्र में आंतरिक और बाह्य वैश्वीकरण लाना था इसी क्रम में उरुग्वे दौर की वार्ता हुई जिसमें बहुपक्षीय तथा संस्थागत कृषि समझौता हुआ,जिसने कड़ी शर्तों पर आधारित इस समझौते से विकसित देशों को लाभ की क्षमता प्रदान की विश्व व्यापार संगठन के अधीन हुए इस बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्था ने राष्ट्रीय व्यापार नीतियों की संभावना पर बुरा असर डाला है इसमें कृषि भी शामिल है जो गेट के दौरान छोड़ दी गई थी गेट भी कृषि व्यापार पर लागू होते थे परंतु इन में कई कमियां थी उदाहरण स्वरुप, इसने कुछ देशों को कुछ गैर उचित प्रशुल्क, जैसे आयात कोटा और कृषि व्यापार सब्सिडी आदि के द्वारा बहुत ज्यादा बंधा था इनमें भी मुख्य रूप से सब्सिडी का प्रयोग है जो सामान्य औद्योगिक उत्पादक पर लागू नहीं होता है
उरुग्वे दौर की वार्ता ने कृषि क्षेत्र के संदर्भ में पहली बहुपक्षीय संधि का निर्माण किया यह लगभग 6 वर्ष की अवधि हेतु लागू किया गया तथा विकासशील देशों के लिए यह अवधि 10 वर्ष की थी जो 1995 से प्रारंभ हुई | कृषि पर उरुग्वे दौर के समझौते ने जो 1990 के बीच में हुआ था, जिसने कृषि क्षेत्र में अनेक अनुशासनो को लाया ,जिसके फलस्वरूप विकासशील देशों की कृषि नीतियों में महत्वपूर्ण परिवर्तन आया जैसे कृषि संबंधी समझौते में भविष्य में किसी भी प्रकार के बंधन को नहीं लाने की बात कही गई तथा विकासशील देशों की अधिवक्ताओं को इसके अनुरूप बनाने पर जोर दिया गया
कृषि का विकास
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कई अल्प विकसित देशों में तीव्र आर्थिक विकास के लिए भूमि का पूर्ण वितरण एक आवश्यकता है वह कहीं भी पर्याप्त नहीं है वह खेतों के लिए विकास की भूमिका के रूप में ही उपयोगी है सच यह है कि कई देशों में विकास के प्रश्न पर आर्थिक विकास जिसका अर्थ औद्योगीकरण लिया जाता है या कृषि इस प्रकार की शब्दावली प्रयोग की जाती है की यह दोनों एक साथ नहीं चल सकते यह नहीं समझा जाता कि निर्माण उद्योग संचार, परिवहन और कृषि को कदम मिलाकर बढ़ाना चाहिए तभी एक संतुलित और स्वस्थ विकास कार्यक्रम चल सकता है
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आर्थिक उन्नति के सामान्य कार्यक्रम के 1 अंग के रूप में कृषि का विकास आवश्यक मानने के लिए कम से कम चार कारण है - क्योंकि शहरी उद्योग और उनके कामगरो के लिए कच्चा माल और खाद पदार्थ देने के लिए वह जरूरी है क्योंकि कृषि पदार्थों के निर्यात द्वारा वह बाहर से जरूर पूंजी उपकरण मंगवाने के खर्च का एक भाग अपने ऊपर ले सकता है क्योंकि वह अर्थव्यवस्था के उन भाग के लिए श्रम मुक्त कर देता है जो बढ़ रहे हैं उद्योग के उत्पादों के लिए एक मंडी तैयार करता है
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जब उद्योग बढ़ते हैं तो शहर भी बढ़ते हैं इसके परिणाम जब उद्योगों की उत्पादकता बढ़ती है तो आय भी बढ़ती है इसी कारण शहरी केंद्रों में खाद्य पदार्थों की मांग बढ़ती है यह बात औद्योगीकरण के पहले चरणों में विशेष रूप से सच है जब तक कामगरों की मजदूरी अपेक्षाकृत कम ही होती है सामान्य तौर पर यह सच है कि कम वेतन वाले श्रमिक अपनी कमाई का बड़ा भाग खुराक पर खर्च करते हैं
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इसलिए जब उनकी आय बढ़ती है तब थोड़े समय तक उस बड़ोती का बड़ा भारी हिस्सा अधिक और पहले से ज्यादा अच्छी खुराक खरीदने पर खर्च किया जाएगा साथ ही साथ नए निर्माण उद्योगों को कच्चा माल चाहिए इन कच्चे मालों में से कई खेतों से पैदा होंगे वस्त्र उद्योग, पैकिंग और डिब्बा बंद करना, वनस्पति तेल, जूते चमड़ा बनाना निर्माण की शाखाओं में से है जो किसानों द्वारा शहरी विकास की प्रक्रिया में कृषि और भी सहायता दे सकती है यदि वह देश के निर्यात को बढ़ा सके खेती बाड़ी, कॉफी, गेहूं, कोको, खजूर का तेल, किसी दूसरी वस्तु विदेशों में बिक्री के लिए पैदा कर सकती है तथा इन वस्तुओं का उत्पादन बढ़ा सकती है
खेती की मुख्य समस्या -
कई देशों में आर्थिक विकास को औद्योगिकरण ही समझा जाता है किंतु किसी भी सफल आर्थिक विकास कार्यक्रम में खेती का एक आवश्यक अंग के तौर पर रहना अनिवार्य है यदि खेती-बाड़ी में साथ ही साथ और वैसा ही परिवर्तन ना हो तो औद्योगिक विकास और बहुत महंगा होगा वह उन लक्ष्य को भी प्राप्त नहीं कर सकेगा जो उनके लिए तय करते हैं आर्थिक विकास की दृष्टि से कम उन्नत देशों में खेती से संबंध रखने वाले 2 सवाल हैं -
भूमि वितरण का सुधार या भूमि के स्वामित्व का पुनवितरण और खेती के उत्पादकता में वृद्धि ऐसा माना जाता है कि यह दोनों जुड़े हुए हैं और एक दूसरे पर बहुत कुछ निर्भर है क्योंकि दोनों औद्योगीकरण की प्रक्रिया पर निर्भर है अधिकांश देशों में भूमि पर काम करने वाले लोग मुद्रा अर्थव्यवस्था के बाहर है वह अपने जमीदारों के खेत जोतते हैं और बदले में भूमिका छोटा सा टुकड़ा उन्हें मिला होता है जिस पर अपना पेट भरने के लिए पुराने तरीकों से खुराक पैदा करते हैं कुछ देशों में जब और जैसे वह कहे जमीदार की जमीन जोतने बोने के अतिरिक्त उसे व्यक्तिगत सेवा देने के लिए भी बाधा होता है
2nd part link :- https://educationgyanindia.blogspot.com/2020/02/part-2.html
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