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जल्द - जल्द पैर बढ़ाओ, खुला आसमान, बांधो न नाव इस ठाँव बंधु chapter 1 || b.a 2nd / 3rd year hindi - B


                              1.जल्द - जल्द  पैर बढ़ाओ 
 यह एक गीत है इसमें समाज में शोषण, गरीबी आसमानता आदि के विरुद्ध आवाज उठाई गई है, इसमें समाजवाद की स्थापना करने के लिए पूंजीवाद के विरुद्ध क्रांति का आह्वान किया है  कवि को इस बात का एहसास है कि देश के दलित वर्ग में अज्ञानता का अंधकार फैला हुआ है, पर जब तक दलित वर्ग जागृत नहीं होगा अन्याय अत्याचार का विरोध करने के लिए आगे बढ़कर नहीं आएगा, तब तक उनकी स्थिति सुधर नहीं सकती है इसके लिए उनका शिक्षित होना जरूरी है

निराला जी का विश्वास है कि समाज में बदलाव आएगा पर इसके लिए दलित वर्ग को शिक्षित होना होगा उन्हें पैर बढ़ाना होग
 2nd  खुला  आसमान 
 


                         यह कविता प्रकृति और उनके जीवन के बारे में है वह कहते हैं कि बरसात के समय जैसे जीवन रुक सा  जाता है ऐसा लगता है मानो अपने आप को सुंदर दिखा रहा हो वर्षा रुक जाने के बाद जीवन पर से गतिशील होता है आज बहुत दिनों के बाद आकाश से बादल हटा है धूप निकल आई है धूप को देखकर सारा संसार खुश हो गया पेड़ पौधे की हरियाली मन को मुग्ध करने लगी है रुका हुआ काम फिर से शुरू हो गया है भैंस, गाय भेड़ के झुंड चरने निकल पड़े हैं बच्चे खेलने लग गए हैं लड़कियां घरों के काम में लगी हैं कुछ लोग व्यापार आदि के लिए घर से बाहर गांव की ओर चल पड़े हैं कुछ लोग खरीद बेच के लिए बजार निकल पड़े हैं पनघट की स्त्रियों की भीड़ बढ़ने लगी है वह सभी बात में मगन हैं इस कविता को भाषा  भावानुसार सहज, सरल और देसी है जो इस कविता की खास विशेषता  है

3rd  part बांधो नाव इस ठाँव बंधु 

 
              
 यह प्रेम कविता है जो मानव प्रेम को उजागर करती है कवि किसी से प्रेम करता है पर समाज उसे मान्यता नहीं देता, वह अपने प्रेम से जुड़ी हर स्थिति को संजोकर अपने दिल में रखे हुए हैं वह नाविक से अनुरोध करता है कि वह नाव को उस स्थान पर ना बांधे, जहां उसकी प्रेम की यादें जुड़ी हुई हैं नदी के इस घाट पर उसे सच्चे प्रेम की गहरी अनुभूति(felling) हुई थी यहां रुकने पर लोगों को उनका प्रेम याद जाता है नाविक बंधु नदी के घाट पर उसे नहाते हुए देखा करता था पानी में डुबकी लगाते हुए उस युवती का सौंदर्य अद्भुत हो उठता था सौंदर्य के प्रभाव और हृदय की स्थिति के कारण मेरे हाथ पांव कांपने लगते थे जब वह युवती हंसती थी तो उसकी वह मुक हंसी बहुत कुछ कह जाती थी हंसने के बावजूद वह अपने आप में सिमटी रहती थी उसके व्यक्तित्व के इस ठहराव से सभी प्रभावित हो जाते थे उसके आंखों का सौंदर्य सभी को आकर्षित करता था उस घाट पर रुकने से मेरे मन की सारी पुरानी यादें फिर से जाग उठेंगे है बंधु इस घाट पर नाव मत रोको
      2nd  chapter  -  इत्यादि, संयुक्त परिवार ( राजेश जोशी)

 



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