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दुनिया की सबसे हसीन औरत (संजीव)
दुनिया की सबसे हसीन औरत-उनकी महत्त्वपूर्ण कहानी है। यह कहानी
नारी के प्रति एक विशेष दृष्टिकोण को सामने लाती है।
कहानी की शुरूआत में प्रमुख-पात्र महमूद-अपने तीन दोस्तों-सतपाल,
सुरेन्द्र और मैं-के सामने के भावुक स्वर में कसम खाते हुए कहता है कि
उसने अपनी जिन्दगी में जैसी हसीन औरत अब देखी, वैसी पहले कभी
नहीं देखी थी। सतपाल, सुरेन्द्र और मैं यानि तीसरा दोस्त जानना चाहते
हैं कि क्या वह गोरी थी, उसके नैन-नक्श कैसे थे और उसकी उम्र क्या
थी ? सभी मित्रों को स्वर साधारण तरीके से सुन्दरता की यह परिभाषा
देता है, जिसमें गोरी, नैन-नक्श और उम्र जैसे शब्द आते हैं। लेकिन
महमूद इन सबसे भिन्न जैसे सौन्दर्य को समझने की कोशिश कर रहा
है। उसे अपने मित्रों की बातों से झुँझलाहट होती है। इस तरह आज के
युवा मन की पहली झलक देते हुए आरम्भ होने वाली यह कहानी धीरे
- धीरे जीवन के कठोर यथार्थ का चित्रा देने की ओर अग्रसर होती है।
महमूद नेत्राहाट का सूर्योदय देखने निकला था, पर सात दिनों से
लगातार झड़ी लगी रहने के कारण सूर्योदय देखे बिना ही उसे लौटआना
पड़ा था। मन मारे बोगी में बैठा था कि अचानक उसने सोचा कि यह तो
ओराँव जन-जातियों को शहर है, जहाँ ओराँव औरतें अपने मुखड़े पर तीन
गोदने गुदवाती हैं, वह इसलिए कि एक बार सिनगी दर्इ नामक रानी ने
महज औरतों की फौज लेकर हमलावरों को उस समय मुँह की खिलाई थी
जब सारे मर्द हँडिया पीकर मुर्दा बने हुए थे। एक बार नहीं तीन-तीन बार
शत्रु के हमले को उन मर्दानी औरतों ने नाकाम कर दिया था। तो महमूद
ललाट पर तीन गोदने की शिनाख्त करने की कोशिश में जब हर औरत
को घूर रहा था, तभी वह आयी जिसके सौन्दर्य की चर्चा महमूद अपने
मित्राों से कर रहा था। वजनी कदम, मैली चादर में सब्जियों का गट्टर
लिए बारिश में भीगी जिस महिला ने सीट तलाशने को मुखड़ा फेरा तो
यह देखकर महमूद चौंक गया कि उसके मुखड़े पर तीन गोदने थे!
रेल-यात्रा के इस प्रसंग में सब्जी को टोकरा लिए, बारिश में भीगी यह
आदिवासी महिला अभी अपने को व्यवस्थित(Arranged) भी न कर
पायी थी कि पहले तो उसे टी.टी. की इस पूछ-ताछ का सामना करना
पड़ा कि यह मूली-वूली किसकी है, फूल गोभी-टमाटर क्यों नहीं हैं? टिकट
है क्या ? टिकट होने के बावजूद टीटी साहिबा मूली के दस रुपये और
माँगती हैं। फिर रेलवे पुलिस के दो जवानों की ज्यादती को वह मूक
होकर सहती है, जिन्होंने बिना कुछ पूछे चुन-चुन कर मुट्टी भर मूलियाँ
उठा ली थी। बिलिलयों और पूँछ ऐंठते कुत्तों के बीच-भीगी गौरैया सी
यह महिला अचानक ही दो पढ़ी-लिखी शरीफजादियों के कोप का शिकार
बन जाती है क्योंकि मूलियों के नीचे खाली जगह पाकर वे अनजाने ही
जहाँ बैठ गयी थी, वहाँ एक पर ऊपर से मूली गिर पड़ी थी। शरीफजादियाँ
गालियाँ बर्रा रही थी, जंगली और बाजारू तक पुकारी जा कर भी पहले
तो वह मौन बनी रहती है, और अन्त में रो देती है। यह रोना अपने
नसीब का है, पैसा और रौब न होने का है और इस बहुत महत्त्वपूर्ण
बात पर हम ध्यान दें-कि यह रोना-साथ में किसी मरद के न होने का है।
आड़े वक्त में कथावाचक मददगार बनकर उसके खोए आत्म-विश्वास
को जगाने, उस पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ़ आवाज़ उठाने में और
इस तरह स्थिति को बदल देने में कामयाब होता है। चार सौ साल पहले
घटित कथा-प्रसंग की स्मृति दिलाकर वह उसके भीतर सोई हुई आज़ाद
जाति की रूह को जगाना चाहता है यह कह कर कि ''जुल्म की खिलाफ़त
ही बहादुरी है। जरूरी नहीं कि बहादुरी महज जीत का ही बाइस बने,
उसकी हार भी सिंगार है।
कहानी के भीतर कहानी का वह प्रसंग है जब चार सौ साल पहले रोहतास किले में रानी सिनगी और सेनापति की बेटी कैली ने आज़ाद
जाति पर मुगलों को शिकस्त दी थी। ओराँव औरतें इसी की याद में
अपने मुखड़े पर तीन गोदने गुदवाती हैं और उन्होंने अब इसे सिंगार के
रूप में अपना लिया है।
कथावाचक ने महिला से अपनी सीट पर बैठने का आग्रह किया और तब
उसने अपना चेहरा ऊपर उठाया। आँखें आँसुओं से तर थी, मगर चेहरा
आत्मविश्वास, स्नेह और सौंदर्य में खिला हुआ था।
यह अनूठा दृश्य था, महमूद को लगा कि वे दोनों कायनात की ऐसी
बुलंदियों पर खड़े हैं जहाँ उन्हें न किसी का खौफ़ था, न किसी से रंजिश।
कहानी के अंत में रोते हुए मुस्करा देने वाली युवती को कथावाचक एकअनूठे सौन्दर्य के रूप में पाठक के मानस-पटल पर अंकित कर देना
चाहता है। उसकी दृष्टि में यह आत्म-विश्वास से भरा चेहरा दुनिया की
सबसे हसीन औरत का है
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