इत्यादि - यह शीर्षक दो शब्दों से बना है (इति + आदि) इति का अर्थ समाप्त व अंतर है आदि का अर्थ शुरू है
जिनकी उपस्थिति अपने लिए नहीं औरों के लिए होती है असल में वे समाज के उस वर्ग की गिनती में आते हैं
जिनका नाम कहीं नहीं लिखा जाता, लेकिन वह नेता के भाषण की भीड़ का हिस्सा है उन्हें यह भ्रम है कि वह
लोकतंत्र बनाने वाले हैं वह मतदान तो करते हैं क्योंकि वह भाड़े के टट्टू हैं उन्हें तो यह भी नहीं मालूम होता कि
वह किस आंदोलन में जा रहे हैं और क्यों ? लेकिन जाने का उत्साह खूब होता है वह भीड़ का हिस्सा है चुनाव
के प्रत्याशी उन सब को लालच देते हैं, नहीं तो वह एक दो वक्त की रोटी या चाय दे देते हैं इस तरह भूख का
सवाल वह हल कर लेते हैं यह, इत्यादि
भीड़ में गोलियां
में लाठियां
चलने की वजह से दुर्घटना
का शिकार भी हो जाते हैं खबरों में उनकी भी
इत्यादि
क्या कर की जाती है भीड़ में सभी लोगों का नाम “ इत्यादि
” हो अंत में कवि अपनी स्थिति का भी वर्णन इस रूप में की इत्यादि
की विडंबना
है उसकी उक्त स्थिति सब जगह होते हुए भी वह बेनाम है, उनका परिचय मात्रा किसी ऐसे रूप में दिखाई देती है जिसकी गणना स्वयं, लोग सामान्य
मैं ना करके सिरफिरे
में करते हैं
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2nd संयुक्त परिवार
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जिसमें दो या दो से अधिक पीढ़ियां
मिलकर रहती हैं वह संयुक्त
परिवार होता है यह भारतीय संस्कृति
का एक प्राचीन
चीन है कवि की अनुभूति
इतनी गहरी है जैसे स्वयं भोगी गई हो
एकल परिवार में आने वाले किसी मेहमान का आकलन जाना उसके आने का संदेश ताले में फसी हुई कागज की एक prachi द्वारा प्राप्त
होना सचमुच भाव वीहल है घर आने वाले वह अतिथि मन ही मन ना जाने कितने भावों को बांटने के लिए रास्ते में बिना रुके पहुंचा होगा फिर यहां से प्यासा ही लौट गया होगा वह मन में कल्पना कर रहा होगा वहां हमेशा कोई ना कोई रहता था और घर का द्वार खुला ही रहता था उसे भूखा प्यासा नहीं जाना पड़ता था और घर लौटने पर उसके आने की खबर निर्जीव
कागज को पर्ची से नहीं बल्कि घर के सदस्य से मिलती थी अर्थात अपनापन कायम रहता था इसके बाद kavi फिर लौट आता है वर्तमान
की ओर जहां परिवार के गिने-चुने सदस्य एक ही समय में घर को ताला लगाकर एक साथ निकल जाते हैं इससे असुरक्षा
भी बढ़ जाती है chor जानते हैं कि उस समय घर पर कोई जीव नहीं होगा लटक रहा होगा तो केवल निर्जीव
ताला पड़ोसी एक दूसरों को जानते तक नहीं सुख दुख में भी लोग इकट्ठा नहीं होते मानो भाव शुन्य हो गया हो इसलिए सामाजिक
संबंध भी क्षीण हो गए हैं एल्बम में लगी फोटो में से अपने पारिवारिक
संबंधों
को लोग पहचानते
हैं कितनी दर्दनाक
स्थिति है यह कविता का आरंभ और अंत बंद घर पर लटकते हुए ताले की जड़ता से जुड़ा हुआ है जो सामाजिक
व्यवस्था
को जड़ता का संकेत है
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