Skip to main content

वे दिन (रामवृक्ष बेनीपुरी) Chapter - 3 || hindi - b || b.a 2nd / 3rd year hindi B


 ( वे  दिन )  रामवृक्ष बेनीपुरी


 इसमें लेखक ने काशी के सांस्कृतिक साहित्य को अपनी भाषा शैली से साकार कर दिया है रामवृक्ष  काशी में बताए गए दिनों को याद करते हैं काशी विद्या और ज्ञान की नगरी है सांस्कृतिक और धर्म के दर्शन काशी में होते हैं 20वी शताब्दी में काशी हिंदी की सबसे बड़ी पीठ रही है क्योंकि उस समय सभी साहित्यकार काशी में थे बालक नाम पत्रिका की छपाई प्रकाश राम से बेनीपुरी का संपर्क काशी में बढ़ा  वह शिवपूजन कोलकाता से काशी आकर रहने लगे उन्हें यहां लाने का श्रेय भी रामवृक्ष को है उन्हें अपना भाई कहकर पुकारते थे शिवपूजन से जुड़े तमाम लेखकों ने लिखा है बेनीपुरी काशी को आनंद की नगरी कहते हैं संसार में जितने भी सुख हैं वह उन दिनों सब काशी में थे आगे वह लिखते हैं दिनभर इधर-उधर काम करते लोग शाम को गंगा किनारे जाकर भांग का शरबत पीते गंगा में गोते लगाते फिर साफ कपड़े पहन कर दो पैसे का पान खाकर घूमने निकल जाते वह आगे लिखते हैं कि हम लोग विशिष्ट पुरुष थे सारे सम्मान 9 में रखकर ना उसे हम उस पार चल देते उधर भांग घोट रही है इधर कहकहे लगा रहे हैं भांग छानकर उस पार नाव लगाते, फिर नाव धारा पर छोड़ दी जाती किसी को परवाह नहीं की रात कितनी बीती, नाव किस घाट लगी, काशी से भांग का रिश्ता अटूट है भांग एक पेय पदार्थ है जो मलाई, दही, आम, लीची, अंगूर आदि में मिलाकर पिया जाता है भांग मस्ती का पेय पदार्थ है हर रोज किसी किसी घर में साहित्य की मंडलियों का जमाव होता पुराने वह नए लोगों का जमावड़ा वास्तव में देखने लायक था हरिऔध की आवाज में करुणा की धार उमड़ती थी किशोरीलाल बुढ़ापे में भी आंखों में सुरमा लगाने से नहीं चूकते श्याम सुंदर की वेशभूषा उनको नहीं बुलाया जा सकता उन दिनों जयशंकर प्रसाद और प्रेमचंद की कर्म स्थली भी काशी थी पर प्रसाद में प्रेमचंद्र के रहन-सहन और तो तरीके में अंतर था क्योंकि प्रसाद जी रहीस रहे थे रंग रूप बातचीत में भी यह दिखता था प्रेमचंद के चेहरे पर जवानी में ही झुर्रियां पड़ गई थी
      प्रसाद जी को इतिहास के सड़े गले पन्नों से नए नए पात्र ढूंढ निकालने और उनमें फिर से व्याकुलता थी वेद, पुराण, जहां भी उन्हें कुछ भी मिलता वह निकाल लेते प्रेमचंद्र जी को अपने गांव, मोहल्ले या शहर चलने फिरने वालों के जीवन में ही रस मिलता था उन्हीं को नाना प्रकार से लिखने में उन्हें मजा आता बेनीपुरी का संबंध काशी हिंदू विश्वविद्यालय से भी है जब बिहार की टोली हिंदू विश्वविद्यालय में पढ़ती थी वहां भी साहित्य का माहौल था अतः वे लिखते हैं कि अभी काशी जाता हूं तो इन गलियारों की ओर, घाटों की ओर, बगीचों की और ललचाइ नजर से देखता हूं आंखें उन लोगों को भी ढूंढती हैं जिनके साथ जिंदगी के वह सुनहरे दिन हंसते-हंसते गुजरे हैं अधिक लोग चल बसे बचे बचाए इधर-उधर बिखर गए काशी है जैसे हमारी काशी उजड़ गई

Comments

Popular posts from this blog

पशुपालक खानाबदोश || UNIT - 02 || M.A 1ST YEAR || IGNOU

इकाई दो                                    पशुपालक खानाबदोश     प्रस्तावना -  पशुपालक खानाबदोश एक जगह अपना मुख्य निवास स्थान बनाते थे और जरूरत पड़ने पर दूसरे इलाकों में जाते थे वह विभिन्न प्रकार के पेड़ पौधों के बारे में जानकारी रखते थे और अपने जीवन यापन के लिए इसका उपयोग करते थे संतानोत्पत्ति , निवास और उनके भोजन की भी जानकारी रखते थे इस ज्ञान से उन्हें पेड़ पौधे लगाने और पशु पालने में सुविधा हुई   कुछ समूह शिकार और संग्रह करते रहे और आज भी कुछ ऐसे अलग समूह है जबकि दूसरे समूह ने पशुपालन को जीवनयापन का प्रमुख साधन बना लिया या खेती को जीवन यापन का प्रमुख हिस्सा बना लिया पशुपालन एक नए बदलाव की आहट थी लोग एक जगह रह कर खेती करने लगे और लोगों ने जानवरों को पालना सीख यह इनकी जीवनशैली का पहला कदम था   पशुओं को पालतू बना...

Unit -4 मार्गदर्शन एवं परामर्श : अवधारणा एवं रणनीतियां

            Unit -4     2. मार्गदर्शन एवं परामर्श : अवधारणा एवं रणनीतियां मार्गदर्शन एवं परामर्श ( Guidance and councelling )   मार्गदर्शन या निर्देशन शब्द का अर्थ सहायता करने से ले जाता है शिक्षा के क्षेत्र में इस अवधारणा का महत्वपूर्ण स्थान है बाल पोषण की परिभाषा मानव क्रियाओं में शैक्षिक , व्यवसायिक , मनोरंजन संबंधी , तैयार करने , प्रवेश करने और प्रगति करने में व्यक्ति की सहायता करने की प्रक्रिया के रूप में की जा सकती है विभिन्न मनोविज्ञान ने मार्गदर्शन की विभिन्न परिभाषा दी हैं मार्गदर्शन को व्यक्ति को उसके जीवन के लिए तैयार करने और समाज में उसके स्थान के लिए तालमेल करने में या सहायता देने के रूप में परिभाषित किया जाता है   मार्गदर्शन वह स्थिति है जहां से व्यक्ति शैक्षणिक तथा व्यवसाय उपलब्धियों के लिए विभाजीत होते हैं ( केफेयर )     माध्यमिक शिक्षा आयोग 1952 ...

घर - बहार ( महादेवी वर्मा) || Chapter 4 hindi b || b.a 2nd/3rd year hindi - b

           4.  घर - बहार ( महादेवी वर्मा )   महादेवी वर्मा का निबंध “ श्रृंखला की कड़ियां ”  में लेखों का संग्रह है   जिनमें नारियों की समस्याओं को लिखा है इन्होंने भारतीय नारी की प्रति स्थितियों को अनेक बिंदुओं से देखने का प्रयास किया है अन्याय आदि . मैं तो सर्जन के प्रकाश - तत्वों के प्रति निष्ठावान हूं उनका यह व्यक्तवय उनके निबंध “ घर बाहर ” के संदर्भ में भी उचित है लेखिका ने नारियों की घर और बाहर की स्थितियों पर विचार प्रकट किया है लेखिका का मानना है कि “  युगो से नारी का कार्य - क्षेत्र घर में ही सीमित रहा “ उनके कर्तव्य को निर्धारित करने में उसकी कोमलता , संतान पालन आदि पर तो ध्यान रखा ही गया , साथ ही बाहर के कठोर संघर्ष में वातावरण और परिस्थिति में भी समाज को ऐसा ही करने के लिए बाध्य किया घर - व - बाहर का प्रश्न उच्च , माध्यम तथा साधारण वित्त वाले , घर की स्त्रियों से संबंध रखता है यह...