(VI) कॉफी हाउस ( रघुवीर सहाय )
लेखक ने कॉफी को चाय से भी अधिक स्वादिष्ट और रसीला बताया है कॉफी की भीनी भीनी महक व स्वाद कॉफी प्रेमियों को इतना लुभाता है कि वह दिन में कई कई प्याले पी जाने की क्षमता रखते हैं सुबह के नाश्ते के साथ कॉफी के प्यालो की संख्या दिन के सभी कामों से पहले और बाद में बढ़ती जाती है कॉफी प्रेमी रात में भी कॉफी पीते हैं कॉफी प्रेमी के लिए सबसे अच्छा बहाना होगा वह जब कॉफी हाउस के सामने से गुजर रहे हो ऐसे समय में स्वयं को कॉफी पीने से रोकना कॉफी वह कॉफी हाउस का अपमान है कॉफी पीने के लिए लोग सिर्फ कॉफी हाउस नहीं जाते बल्कि वह शहर भी जाते हैं लखनऊ, इलाहाबाद और पटना के कॉफी हाउस की तुलना में दिल्ली के कॉफी हाउस को लेखक ने सबसे हटकर बताया है कुछ कॉफी हाउस केवल विद्यार्थियों का अड्डा होते हैं और कुछ लोग फैशनेबल लोग अपने स्टेटस के दिखावे के लिए कॉफी हाउस जाते हैं किंतु दिल्ली का कॉफी हाउस ऐसा नहीं है जहां कोई भी अपनी इच्छा से जा सकता है यहां आकर बैठने और पीने वाले लोग एक दूसरे से अपरिचित हैं एक मेज की चार कुर्सियों पर अपरिचित लोग आकर बैठते हैं और खा पीकर चल देते हैं दिल्ली का युवा वर्ग अपनी पहली पीढ़ी को देखा देखी कॉफी हाउस में जाता तो है किंतु अपने दौलत का प्रदर्शन करने किंतु दिल्ली का वर्ग बौद्धिक विचार - विमर्श के लिए नहीं बल्कि इसलिए जाता है कि कोई उन्हें पिछड़ा हुआ ना माने
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