(VII) स्वयंभू महापंडित
स्वयंभू महापंडित गुणकर मूले द्वारा लिखी जीवनी है इसमें राहुल के व्यक्तित्व के माध्यम से निरंतर संघर्षशील रहने का पाठ पढ़ाया है जो अपने जीवन का उद्देश्य बौद्ध साहित्य व संस्कृति का अध्ययन मानते थे क्योंकि बौद्ध भारत से लुप्त हो गया था राहुल ने तिब्बत जाने का सोचा और इस संकल्प को पूरा करने के लिए राहुल ने पहले बौद्ध साहित्य पाली ग्रंथों का अध्ययन किया और लगभग सभी तीर्थ यात्रा की इस क्रम में उन्हें श्रीलंका में अध्ययन भी करना पड़ा वहां 18 महीने तक बुद्ध कालीन भारत के समाज, राज तंत्र और भूगोल आदि का उन्होंने अध्ययन किया और आवश्यक जानकारी को नोट भी करते गए ताकि भविष्य में उनकी मदद ली जा सके वहां से उन्होंने तिब्बत जाने का निश्चय किया उसके लिए उन्हें तरह-तरह के पापड़ बेलने पड़े घटिया भेस धारण करना पड़ा बदन पर मैल जमने देना पड़ा वह भारत, नेपाल, तिब्बत आदि सभी सरकारों की आंखों में धूल झोंकना पड़ा वे सफल हुए वह बाद में तीन यात्राएं और करी उनकी चार तिब्बत यात्रा में से तीन महत्वपूर्ण रही जिसमें उन्होंने 156 नई पुस्तकों की खोज की इसी यात्रा में उन्हें धर्म कीर्ति का प्रमाण हासिल हुआ, जो उनके जीवन का सपना था चौथी यात्रा के बाद उन्होंने राजनीति में जाने का निश्चय किया और किसान सत्याग्रह आंदोलन से जुड़ गए ढाई साल तक जेल की सजा भी काटी, किंतु कारावास में भी पुस्तकों के संपादन का कार्य करते रहे दरअसल राहुल एक ही कार्य क्षेत्र तक सीमित नहीं रहना चाहते थे विज्ञान के विकास के साथ-साथ सामाजिक जीवन में सुधार के भी पक्षधर थे गुणाकर मुले द्वारा
लिखित जीवनी से हमें जीवन के प्रति एक नए उत्साह की शिक्षा मिलती है
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