Unit
2 संज्ञानात्मक विज्ञान दृष्टिकोण
संज्ञानात्मक विकास का अर्थ - संज्ञानात्मक प्रक्रिया के अंतर्गत बच्चों का चिंतन, बुद्धि तथा भाषा में परिवर्तन आता है संज्ञानात्मक विकास प्रक्रिया बालों को कविता याद करने, गणित की समस्या को हल करने के तरीके के बारे में सोचने वह निर्णय लेने, कोई अच्छी रणनीति बनाने जैसे काम के लिए योग्य बनाती है
1. जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत
जीन पियाजे 1869
- 1980 एक प्रमुख मनोवैज्ञानिक थे जिन्होंने प्राणी विज्ञान में शिक्षा प्राप्त की थी उन्होंने बालकों के संज्ञानात्मक विकास पर कार्य किया शिक्षा मनोविज्ञान में क्रांतिकारी संकल्पना को इन्होंने उद्घाटित किया है जिसके परिणाम स्वरूप
इन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया जीन पियाजे के अनुसार मनुष्य आरंभिक बाल्यवस्था से ही स्वतंत्र, अर्थ रचयिता होता है जो स्वयं ज्ञान का निर्माण करता है ना कि उसे दूसरों से ग्रहण करता है
उसका बौद्धिक विकास उसके स्वयं की बौद्धिक जो द्वारा प्रभावित होता है बच्चा मुख्य रूप से बाहर की वस्तुओं पर अपने द्वारा की गई किया द्वारा सीखता है और विचारों का निर्माण करते हैं संज्ञानात्मक विकास से तात्पर्य चिंतन में गुणात्मक परिवर्तन से है बालकों में वास्तविकता के स्वरूप में चिंतन करने, उनकी खोज करने, उनके बारे में समझ बनाने तथा उनके बारे में सूचनाएं एकत्रित करने की क्षमता बालक के अनुभवों की के द्वारा निर्धारित होती है बालक अपने विश्व की ज्ञान रचना में
स्कीमा का प्रयोग करता है स्कीमा का मतलब ऐसी मानसिक संरचना से है
जो व्यक्ति के दिमाग में सूचनाओं को संगठित करने के लिए होती है यह स्कीमा दो प्रकार का होता है पहला साधारण तथा दूसरा जटिल साधारण स्कीमा मोटरसाइकिल या खिलौने के स्कीमा से समझा जा सकता है इसी प्रकार अंतरिक्षम निर्माण कैसे हुआ यह जटिल स्कीमा का उदाहरण होगा
पियाजे के अनुसार स्कीमा मैं दो प्रक्रिया होती हैं
1. आत्मसाती करण(Assimilation)
- वह प्रक्रिया है जिसमें बालक नए ज्ञान को पूर्ण ज्ञान योजना में शामिल कर लेता है
2. समायोजन(Adjustment)
- वह मानसिक प्रक्रिया है जिसमें बालक नई सूचना के अनुसार समायोजन करता है अर्थात स्कीमा
को वातावरण के अनुसार समायोजित कर लेता है इसे प्याजे ने बच्चे द्वारा एक अवस्था से दूसरी अवस्था में पहुंचने की प्रक्रिया को समझने का कार्य क्या है पियाजे के अनुसार जब बालक विचारों में असंतुलन से संतुलन की ओर जाता है तो बालक में संज्ञानात्मक परिवर्तन आता है जो कि गुणात्मक होता है *
उनका कहना है कि संज्ञानात्मक विकास 4 क्रमगत अवस्थाओं से होकर गुजरता है प्रत्येक अवस्था आयु विशेष में होती है केवल सूचना
एकत्रित करने से बच्चा उप व्यवस्था में नहीं पहुंचता
1.संवेदी( sensory) - पेशीय अवस्था ( सेंसरीमोटर स्टेज)
यह अवस्था जन्म से लेकर लगभग 2 वर्ष तक की होती है इस अवस्था में बच्चा कार्य करके अपनी समझ विकसित करते हैं जैसे देखकर छूना, पैर मारना आदि बालक में प्रतिवर्ती क्रियाएं होती हैं जैसे कि चूसना तथा धीरे-धीरे जटिल पेशिया कार्य पैटर्न दिखता है जैसे चीजों को बार-बार गिराना जिनके गिरने की आवाज उन्हें रोचक लगे इनके द्वारा बालक यह जान पाता है कि घटनाओं एवं वस्तुएं तब भी उपस्थित रहती है जब वह हमारे सामने नहीं होती हैं
2. प्राक संक्रियात्मक अवस्था(Preoperative)
2 से 7 वर्ष तक होती है इस अवस्था को दो भागों में बांटा जा सकता है 1. संक्रियात्मक
2. अंतर्दशा अवधि
1 यह लगभग 2 से 4 वर्ष की होती है बालक वस्तु सामने उपस्थित न होने पर भी उनकी मानसिक छवि बना लेता है जिससे वह विभिन्न संकेतों का विकास कर लेता है भाषा का प्रयोग तथा बच्चों में विचारों के विकास को दिखाती हैं( जैसे लकड़ी
को ट्रक को समझ कर चलाते हुए खेलना) बच्चों के द्वारा की गई ड्राइंग में भी उनके द्वारा प्रयोग किए गए संकेत को देखा जा सकता है
जीन पियाजे इस अवधि की दो सीमाएं बताई हैं 1 आत्म केंद्रित
और जीववाद
1.स्वयं के दृष्टिकोण व अन्य के दृष्टिकोण में विभेद ना कर पाने की स्थिति है*
2.इसमें बालक सभी वस्तुओं को सजीव समझता है तथा सोचता है कि यह सभी सजीवों की तरह कार्य करते हैं बच्चा बादल, पंखा, कार आदि को भी सचिव मानता है
2.अंतर्दशा - यह अवधि 4 से 7 साल की होती है इस अवधि में बच्चे में प्रारंभिक तक शक्ति आ जाती है क्योंकि बच्चा इस अवधि में अपने ज्ञान और समझ के बारे में पूरी तरीके से जानते हैं अर्थात वह बहुत सी बातें जानते हैं किंतु उनमें तर्कसंगत चिंतन नहीं होता उदाहरण के लिए वे * कर पाते हैं किंतु कहां प्रयोग करना है और क्यों प्रयोग करना है इसे नहीं समझ पाते हैं
3. मूर्त सक्रियता की अवस्था - 7 साल से शुरू होकर 12 साल तक चलती है और
तर्कशक्ति की जगह तार्किक शक्ति आ जाती है(logical
reasoning) क्योंकि बालक समस्या समाधान के लिए प्रति स्थितियों पर ही निर्भर करता है बच्चे यह समझने लगते हैं कि 2*2
=4 हुआ
तो 4/2 = 2 होगा*
4. औपचारिकता संक्रिया की अवस्था -
यह अवस्था 11 वर्ष से आरंभ होती है इस अवस्था में बालक का चिंतन अधिक क्रमबद्ध, लचीला और तार्किक हो जाता है मौखिक कथनों की समस्या हल करने की क्षमता उनमें देखी जा सकती है पियाजे के अनुसार इस अवस्था में बच्चे वैज्ञानिकों की तरह तार्किक सोच रखते हैं
2nd
लिव सिमनो विच वाइगोत्सकी : संज्ञानात्मक विचार
वाइगोत्सकी 1896
- 1934 russi मनोवैज्ञानिक वाइगोत्सकी ने बालक के संज्ञानात्मक विकास में समाज और सांस्कृतिक संबंधों के बीच संवाद को महत्वपूर्ण घोषित किया प्याजे की तरह के वाइगोत्सकी भी यह मानते थे कि बच्चे ज्ञान का निर्माण करते हैं किंतु यह भाषा विकास, सामाजिक विकास, यहां तक कि साइट विकास के साथ-साथ सामाजिक सांस्कृतिक संदर्भ में होता है
वाइगोत्सकी की के अनुसार यह आवश्यक है की संज्ञानात्मक विकास को समझने के लिए उन और औजारों का परीक्षण आवश्यक है भाषा विकास का महत्वपूर्ण औजार है आरंभिक बाल्यकाल में ही बच्चा अपने कार्यों के लिए एवं समस्या समाधान में भाषा का औजार की तरह प्रयोग करने लग जाता है इसके अतिरिक्त वाइगोत्सकी का यह भी मानना है कि संज्ञानात्मक कौशल आवश्यक रूप से सामाजिक और सांस्कृतिक संबंध में
बने होते हैं
Comments
Post a Comment