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Unit -4 मार्गदर्शन एवं परामर्श : अवधारणा एवं रणनीतियां


            Unit -4    2. मार्गदर्शन एवं परामर्श : अवधारणा एवं रणनीतियां

मार्गदर्शन एवं परामर्श(Guidance and councelling)

 मार्गदर्शन या निर्देशन शब्द का अर्थ सहायता करने से ले जाता है शिक्षा के क्षेत्र में इस अवधारणा का महत्वपूर्ण स्थान है बाल पोषण की परिभाषा मानव क्रियाओं में शैक्षिक, व्यवसायिक, मनोरंजन संबंधी, तैयार करने, प्रवेश करने और प्रगति करने में व्यक्ति की सहायता करने की प्रक्रिया के रूप में की जा सकती है विभिन्न मनोविज्ञान ने मार्गदर्शन की विभिन्न परिभाषा दी हैं मार्गदर्शन को व्यक्ति को उसके जीवन के लिए तैयार करने और समाज में उसके स्थान के लिए तालमेल करने में या सहायता देने के रूप में परिभाषित किया जाता है

 मार्गदर्शन वह स्थिति है जहां से व्यक्ति शैक्षणिक तथा व्यवसाय उपलब्धियों के लिए विभाजीत होते हैं (केफेयर)
  माध्यमिक शिक्षा आयोग 1952 के अनुसार -   मार्गदर्शन लड़कों तथा लड़कियों को सहायता प्रदान करने की एक ऐसी कला है जो उन्हें अपने और उस संसार, जहां उन्हें रचना और काम करना है, से संबंधित तत्व के पूर्ण प्रकाश में अपने भविष्य के लिए बुद्धिता पूर्वक योजना बनाने की योग्यता प्रदान करती है
 योग्यता का विकास करना, उद्देश्य की प्राप्ति करना तथा अनुभव का प्रावधान करना, बुद्धिमता पूर्ण निर्देशन के बिना दिए गए, शिक्षण को अच्छे शिक्षण की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है और अच्छे शिक्षण के बिना दिया गया निर्देशन भी अधूरा होता है

 निर्देशन के सिद्धांत
 निर्देशन एक प्रक्रिया है जो व्यक्तियों की सहायता करती है यह पढ़ कर दिया व्यक्ति पर अपने विचार तो अपने की बजाय उसके गुणों के अनुसार निर्णय लेने के विकास से संबंधित है इस प्रक्रिया के दौरान व्यक्ति को स्वयं समझने, अपनी योग्यताओं, क्षमताओं तथा रुचि को जानकर उसका विकास करने के लिए सहायता दी जाती है समस्या का समाधान खोजने तथा निर्णय लेने की क्षमता का विकास कर सके
Ø  अपने मानसिक क्षमता के संदर्भ में व्यक्ति अपने  जरूरतों को पहचान सके, और इस संदर्भ में उसकी सहायता करना
Ø  वांछित(जिसे कोई वस्तु प्राप्त हुई हो) मूल्यों के विकास में व्यक्ति की सहायता करना
Ø  व्यक्ति को अधिक से अधिक आत्म निर्देशित बनाने में मदद करना
Ø  व्यक्ति को अपनी रुचि, अभिवृत्ति, अभिरुचिओ, योग्यता  की जानकारी की प्राप्त करने में सहायता करना
Ø  निर्देशन में व्यक्ति किस प्रकार सहायता की जाती है कि वह अपने मानसिक स्थिति को समझे, स्वीकार करें तथा उन्हें काम में लाए
Ø  व्यक्ति को ऐसा अनुभव प्राप्त करने में सहायता मिलती है जो उसकी निर्णय शक्ति में वृद्धि कर सके
Ø  व्यक्ति को एक आदर्श व्यक्ति बनाने में उसमें क्षमता का विकास करने में मदद करना भी इसका एक उद्देश्य है

 निर्देशन के प्रकार
  पैटरसन और विलियमसन के अनुसार इसके 5 प्रकार होते हैं
1. शैक्षिक निर्देशन                2. व्यवसायिक निर्देशन              3. व्यक्तिगत निर्देशन  
4. स्वास्थ्य संबंधी निर्देशन    5. आर्थिक निर्देशन

भारतीय संदर्भ में निरीक्षण कार्य को तीन भागों में बांटा गया है
1. शैक्षिक निर्देशन               2. व्यवसायिक निर्देशन                3. व्यक्तिगत निर्देशन

1. शैक्षिक निर्देशन  का अर्थ उस व्यक्तिगत(Personal)सहायता से है जो विद्यार्थियों को इसलिए प्रदान की जाती है कि वह अपने लिए विधालय, पाठ्यक्रम, पाठ्य विष्य एवं स्कूल जीवन का चयन कर सके और उन से तालमेल कर सके इसमें विद्यार्थियों को सीखने की समस्या का निदान(अंत)  तथा उनका उपचार किया जा सकता है इसके लिए वार्ता, मनोवैज्ञानिक परीक्षण, साक्षात्कार(Interview) तथा अध्ययन जरूरी है

2.व्यवसायिक निर्देशन -  व्यवसायिक निर्देशन व्यक्ति को निजी सहायता प्रदान करने की वह पढ़ कर दिया है जिसके द्वारा व्यक्ति स्वयं अपने लिए व्यवसाय का चयन कर सके उसके लिए तैयारी कर सके तथा उसमें प्रवेश करके उन्नति कर सकें

3. व्यक्तिगत निर्देशन -  व्यक्ति के व्यक्तिगत समस्याओं के समाधान के लिए सहायता दी जाती है शिक्षा के क्षेत्र में निजी मार्गदर्शन  निम्न प्रकार से दिया जा सकता है
 अभिव्यक्ति(मन के भाव आदि के प्रकट होने) के अवसर प्रदान करके, उत्तरदायित्व की भावना का विकास करके, खेल का आयोजन करके, मानवीय गुणों का विकास करके, स्वास्थ्य के प्रति चेतना का विकास करके, बालकों में सहयोग तथा नेतृत्व विकास करके,
व्यक्तिगत मार्गदर्शन का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति के संपूर्ण विकास में सहायता करना है व्यक्ति कई प्रकार की समस्या से पीड़ित होता है इसमें समस्या का निदान तथा उपचार किया जा सकता है

  परामर्श की अवधारणा
 परामर्श का अर्थ सलाह करना, मतों का आदान-प्रदान तथा एक साथ मिलकर किसी मुद्दे समस्या पर सोचना है जैसे कि हमारे जीवन में आने वाली कोई कठिनाई का समाधान हम अपने बड़े या फिर समझदार व्यक्ति की सलाह से कहते हैं प्रमुख व्यक्ति की समस्याओं की विद्यालय अथवा संस्थाओं स्रोत से समाधान की प्रक्रिया है
    
   कार्ल रोजर्स के अनुसार रामास एक निश्चित रूप से स्वीकार क्या हुआ संबंध है जो  सलाह लेने वाले की मात्रा में स्वयं को समझने में सहायता प्रदान करता है, जिससे उनका अधिक से अधिक विकास हो सके

 इसमें छात्रों के सभी अनुभवों का अध्ययन किया जाता है छात्रों की योग्यताएं विशेष परिस्थितियों के अनुसार देखी जाती है परामर्श दो व्यक्तियों के बीच होता है
1. परामर्शदाता               2. परामर्श इच्छुक
 दूसरा व्यक्ति अपनी समस्या पहले व्यक्ति की सलाह से समझाता है दोनों साथ मिलकर समस्या पर काम करते हैं ताकि समस्या को अधिक स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जा सके तथा  परामर्श इच्छुक को स्वयं समस्या सुलझाने में सहायता प्रदान की जाती है

 परामर्श की प्रक्रिया को नियमित तरीके से अरेंजमेंट किया जाता है
1. निर्देशक परामर्श             2. आनिर्देशक परामर्श               3.समन्वित परामर्श

1. निर्देशक परामर्श - इसमें सलाह देने वाला केंद्र में होता है और सलाह लेने वाला योग्य, अनुभवी, तार्किक और समझदार होने के कारण सलाह देने वाला महत्वपूर्ण होता है यह  काम निम्न चरणों द्वारा पूर्ण होती है

1. पहले समस्या का विश्लेषण किया जाता है
2. विश्लेषण करने के बाद सभी सामान्य किया जाता है
3. बाद में समस्या के कारणों की जांच की जाती है  
4. अब सलाह लेने वाले की समस्या के स्वरूप का अनुमान लगाया जाता है 
5. यह सभी चरण में महत्वपूर्ण और जटिल होता है इसमें सलाह लेने वाले की मदद की                     जाती है

2.आनिर्देशक  परामर्श - इसमें परामर्श, सलाह लेने वाला स्वतंत्र होता है इसमें व्यक्ति स्वयं से समस्या निदान का प्रयास करता है तथा उसे अपनी  अंतर्दृष्टि समस्या से प्राप्त होती हैं
1. वह समस्या समाधान की प्रक्रिया शुरु करता है  
2. परामर्श इच्छुक स्वयं सहायता की आवश्यकता कम करते हुए परामर्श के माध्यम से .  .   समस्या समाधान करता है  
3. परामर्शदाता व्यक्ति की आवश्यकता को चिन्हित करता है

3.समन्वित परामर्श -  यह दोनों के बीच मार्ग अपनाती है इसमें परामर्शदाता सबसे पहले  परामर्श इच्छुक के निजी और आवश्यकता  की ओर ध्यान देता है वह निर्देशन से शुरू करता है और परिस्थिति के अनुसार कभी निर्देशक और कभी आनिर्देशक विधि का प्रयोग करता है इसमें समस्या के कारण का निदान, समस्या का विश्लेषण, परिवर्तन की अस्थाई योजना, इंटरव्यू और प्रोत्साहन, समस्याओं का सुझाव, आदि आते हैं

 निर्देशन में शिक्षक एवं सलाहकार की भूमिका
 विद्यालयों में सेवा को सफल बनाने में शिक्षक का महत्वपूर्ण स्थान है एक सफल निर्देशक या सलाहकार के रूप में शिक्षक की भूमिका को निम्नलिखित विभागों में बांटा जा सकता है

1. शिक्षक बालक की विभिन्न मानसिक शक्तियों का मापन करके उसे उन से अवगत करवाता है इसके लिए वह विभिन्न मनोवैज्ञानिक मापन का उपयोग करता है इस प्रकाश शिक्षक छात्र को अपनी योग्यता और कमजोरियों को समझाने में सहायता करता है

2. विद्यालय छोड़ने के बाद व्यवसाय के चुनाव में शिक्षक बालकों की सहायता करता है बालको मैं इतनी शक्ति नहीं होती कि वह अपने लिए किसी उचित व्यवसाय को चुन सके ऐसी स्थिति में शिक्षक ही उनकी मदद का व्यवसायिक समस्या का समाधान करते हैं

3. बालकों को विभिन्न व्यवसायिक समस्याओं का ज्ञान हो इस कार्य को भी शिक्षक ही करता है यह विभिन्न व्यवसायिक संस्थाओं का सहयोग प्राप्त करके बालकों का व्यवसाय दिलाने में उनकी मदद करता है

4. विधाओं में एडमिशन लेने के बाद बालकों को पाठ्यक्रम के विषय को चुनने में बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ता है इस कठिन समय में शिक्षक ही उनका साथ देते हैं और उचित विषय को चुनकर उनके पाठ्य चयन में उनकी मदद करता है

5. विद्यालय में निर्देशन के आयोजन में शिक्षक का स्थान इसलिए ऊंचा है कि विद्यार्थी को विभिन्न प्रकार के व्यवसाय तथा शिक्षा के संबंध में सूचना देता रहता है इस प्रकार वह अपने व्यवसाय तथा शिक्षा के संबंध में आत्म निर्देशित(self directed) हो जाते हैं

Comments

  1. Students in many fields of computer and mathematical sciences are taught about the concepts of data science. They often seek All Assignment Help to complete their projects.

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