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Unit 5 विशेष आवश्यकता बालक : अवधारणा एवं समाज


    Unit 5 विशेष आवश्यकता बालक : अवधारणा एवं समाज

विशिष्ट बालकों से मतलब ऐसे बालक से हैं जो शारीरिक या मानसिक रूप में सामान्य बालकों से अलग होता है उनके साथियों को उनकी ओर विशेष ध्यान देना पड़ता है और इससे उनके कार्य प्रभावित होते हैं प्रवीण एवं प्रतिभाशाली (Brilliant)बालकों के साथ साथ उन बालको से भी है जो निम्न बुद्धि के होते हैं
 बालकों को चार विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया जाता है
1. मानसिक असाधारण बालक   2. शारीरिक असाधारण बालक   3. वाणी असाधारण बालक   4. संवेगात्मक असाधारण बालक

प्रतिभा शीलता(Genius) - ऐसा व्यक्ति जो विशेष रूप से असाधारण योग्यता या बुद्धि से संपन्न है प्रतिभाशाली व्यक्तियों पर अध्ययन का आरंभ लेविस टर्मन के कार्य से हुआ जिसमें उन्होंने उच्च योग्यता वाले व्यक्तियों की पहचान करने के लिए बुद्धि परीक्षण का निर्माण किया प्रतिभा शीलता को विशेष आवश्यकता बालक अवधारणा एवं समाज कुछ सामान्य बुद्धि कहा गया यह विद्यालय से संबंधित गतिविधियों तक ही सीमित नहीं है बल्कि खेलकूद जैसे क्षेत्र में भी शामिल है केवल संख्यात्मक योग्यता और से ही युक्त होना प्रतिभाशाली नहीं है क्या योग्यता के स्वरूप और संगठन से प्रतिभा शीलता परिभाषित होती है

प्रतिभाशाली बच्चों की विशेषताएं
Ø  उच्च स्तरीय चिंतन, समस्या समाधान तथा निर्माण की क्षमता
Ø  नई समस्याओं के लिए पहले से विद्यमान कौशल का उपयोग करना
Ø  समस्याओं का समाधान
Ø  कुछ आत्म क्षमता तथा आंतरिक नियंत्रण
Ø  अकेले रहने के प्रति रुझान
Ø  प्रतिभाशाली बच्चे आरंभ से ही असाधारण होने के लक्षण प्रदर्शित करते हैं बाल्य काल के दौरान ऐसे बच्चे विस्तार, अच्छी स्मृति, नए पन के प्रति अभिरुचि, और कम उम्र में ही भाषा का उपयोग करते हैं

प्रतिभा संपन्न(Talented) व्यक्ति को पहचानना
प्रतिभा संपन्न बच्चों को पहचानने के लिए बुद्धि एवं उपलब्धि के परीक्षणों का सर्वाधिक उपयोग किया जाता है प्रतिभाशाली बच्चों के लिए कई विशिष्ट योजनाओं ने अधिक कठोर विभाजन बिंदु जैसे 130,150, 160 तक iq  का होना या उपलब्धि का लगभग 95% तक पाया जाना

 सृजनात्मक(Creative) अवधारणात्मक समझ
सृजनात्मक 1 ढंग से चिंतन करने का तरीका होता है जिसे रचनात्मक चिंतन भी कहा जाता है लोगों ने सर्जनात्मक का विभिन्न अर्थ में प्रयोग क्या है लेकिन ड्रवडाल द्वारा दी गई संख्या सबसे ज्यादा फेमस है सृजनात्मक  व्यक्ति की उस क्षमता को कहा जाता है जिसमें वह कुछ ऐसी नई चीजों या विचारों को पैदा करता है जो नया होता है एवं जो पहले से उसे पता नहीं होता यह एक काल्पनिक काम चिंतन हो सकता है यह वैज्ञानिक या साहित्यिक रचना के रूप में भी हो सकता है
  हेमोविज के अनुसार नया परिवर्तन लाने, अविष्कार करने तथा तत्वों को इस ढंग से रखने की क्षमता जैसे वो पहले कभी नहीं रखे गए हो ताकि उनका महत्व सुंदरता बढ़ जाए इसको ही सृजनात्मक की संज्ञा दी जाती है

सृजनात्मक को परिभाषित करने के कुछ महत्वपूर्ण तत्व
सृजनात्मक एक ऐसी प्रक्रिया है जो लक्ष्य निर्देशित होती है इसमें व्यक्ति को लक्ष्य निश्चित रूप से पता होता है और उसका व्यवहार इसी लक्ष्य से संबंधित होता है व्यक्ति इस ढंग का व्यवहार अपने व्यक्तिगत यह सामूहिक लाभ के लिए भी करता है
सृजनात्मक मैं व्यक्ति कुछ नया और भिन्न चीजों की रचना करता है इसलिए यह है उस व्यक्ति के लिए भी अनूठा होता है
सृजनात्मक चिंतन में व्यक्ति समस्या के विभिन्न पहलुओं पर भिन्न-भिन्न दशाओं में चिंतन करता है इस तरह भिन्न भिन्न दशाओं में चिंतन करने की क्षमता को अपसरण चिंतन कहा जाता है
सृजनात्मक चिंतन का एक विशेष रूप में जिसे रचनात्मक चिंतन भी कहा जाता है यह बुद्धि से भिन्न है क्योंकि बुद्धि में चिंतन के अलावा भी अन्य मानसिक क्षमता होती हैं
सृजनात्मक मैं व्यक्ति कुछ कल्पना भी करता है

 पिछड़े बालक (slow learner)

शिक्षा मनोविज्ञान की दृष्टि से ऐसे बालक पिछड़े हुए कहलाते हैं जो अपनी आयु के अन्य साथियों के साथ समान गति से आगे नहीं बढ़ पाते पिछड़े हुए बालक वह बालक हैं जो सीखना तो चाहते हैं लेकिन उनके सीखने की गति अपनी आयु के अन्य बालकों की तुलना में कम होती है जिसके कारण वह कक्षा और विद्यालयों की विभिन्न गतिविधियों में पिछड़ जाते हैं पिछड़े बालक का मंदबुद्धि होना जरूरी नहीं है पिछड़ेपन के अनेक कारण है उन कारणों में से मंदबुद्धि होना एक कारण हो सकता है

इस स्थिति को पिछड़ापन कहते हैं शैक्षिक रूप से पिछड़े हुए बालक कठिन एवं लगातार प्रयास करते हैं, पढ़ते हैं, समझने की कोशिश करते हैं और उपलब्धि स्तर पर प्राप्त करने की कोशिश करते हैं लेकिन वह अपेक्षा से कम प्राप्त कर पाते हैं क्योंकि उनके सीखने की गति औसत से कम होती है शिक्षक उनको पढ़ा नहीं पाते क्योंकि वह समझ नहीं पाते हैं यहां तक कि शिक्षक अपनी तरफ से अच्छे से अच्छे तरीके से समझाने का प्रयास करें तब भी वह सोचते ही रहते हैं
 सिरिक बर्ट के अनुसार पिछड़ा बालक वह है जो अपने विद्यालय जीवन के बीच में यानी कि लगभग 10 साल की उम्र में अपनी कक्षा से नीचे का कार्य ना कर सके जो उसकी आयु के लिए सामान्य कार्य है
टी. के. मेनन के अनुसार - भारतीय स्थिति में पिछड़ा बालक है जो अपनी कक्षा की औसत आयु से एक से अधिक वर्ष बड़े हो

 पिछड़े बालकों की विशेषताएं -
Ø  पिछड़े बालक की सीखने की गति धीमी होती है  वे सीख कर का जल्दी भूल जाते हैं
Ø  पिछड़े बालक की मानसिक आयु अपने छात्रों से कम होती है
Ø  पिछड़े बालक को शैक्षिक उपलब्धि सामान्य औसत से कम होती है
Ø  और वह नवीन समस्या का विचार नहीं
Ø  पिछड़े बालक अपनी ओर अपने से नीचे की कक्षा का कार्य करने में असमर्थ होते हैं
Ø  पिछड़े बालक सामान्य शिक्षण विधियों द्वारा शिक्षण ग्रहण करने में विफल रहते हैं
Ø  वह समाज से अलग रहना चाहता है
Ø  पिछड़े बालक जीवन में निराशा का अनुभव करते हैं
Ø  पिछड़े बालक की ध्यान केंद्रित करने की क्षमता कम होती है और वह एक विषय पर ज्यादा देर तक ध्यान नहीं केंद्रित कर पाते है
Ø  क्योंकि बिछड़े बालक शारीरिक दृष्टि से सामान्य बालकों से सामान लगते हैं इसलिए माता-पिता और अध्यापक उनसे वही उम्मीद रखते हैं जैसे सामान्य बालकों से रखते हैं
Ø  जब भी उम्मीद पर पूरा नहीं उतर पाते हैं उन्हें माता-पिता और अध्यापक की तरफ से डांट, फटकार और सजा मिलती है जिससे ऐसे बालकों की सोच स्कूल एवम शिक्षा के प्रति नकारात्मक हो जाती है
Ø  उनके सहपाठी कक्षा में उनका मजाक उड़ाते हैं इसका परिणाम यह होता है कि इन बालकों में भावना समस्या और व्यवहार संबंधी समस्याएं पैदा हो जाती है
Ø  ऐसे बालक अधिक चिंतित और तनावग्रस्त रहते हैं वह समझ नहीं पाते कि उन्होंने क्या गलत कर दिया है इस तनाव और चिंता का असर उनकी उपलब्धियों पर भी पड़ता है

 बाल्को में पिछड़ेपन या मंदता के कारण
1. शारीरिक कारण
2. मानसिक कारण
3. विद्यालय का वातावरण
4. पारिवारिक कारण
5. कक्षा में अनुपस्थित

4.सामाजिक सांस्कृतिक रूप से वंचित बालक
 बालक अपने सामाजिक और सांस्कृतिक गुणों के आधार पर ही बेहतर नागरिक बनता है सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश बालकों को विकास एवं उन्नति के अवसर प्रदान कराता है लक्ष्य को प्राप्त करने में सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश की भूमिका भी महत्वपूर्ण होती है इसके विपरीत सामाजिक एवं सांस्कृतिक स्थिति ना होने पर बालक का विकास बाधित हो जाता है बालक अपने जीवन मूल्यों को अपने समाज और संस्कृति से सीखता है बालक की क्षमताओं का विकास वातावरण में होता है इसके अतिरिक्त स्वयं वातावरण भी बालक के विकास की दशा, और गति निर्धारित करने में सक्रिय एवं महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है इसके परिणाम सब लोग यदि किसी बालक की योग्यता, क्षमता एवं अवसरों की उपलब्धता के प्रभावित होने से उसका विकास नहीं हो पाता है अर्थात वह पिछड़ जाता है तो ऐसे बालकों को वंचित वालों को भी श्रेणी में रखा जाता है

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