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वैश्वीकरण के मुद्दे || unit - 6 || b.a 3rd year globlazation ||


                                             वैश्वीकरण के मुद्दे 

वैश्वीकरण के आलोचनात्मक  आयाम

Ø वैश्वीकरण के आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक तथा वैचारिक आयाम है आर्थिक वैश्वीकरण जो विश्व की सभी अर्थव्यवस्थाओं के बीच वैश्विक जुड़ाव से जुड़ा होता है यह राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था वाले विश्व से वैश्विक अर्थव्यवस्था वाली विश्व में जिसमें उत्पादन के साधनों का अंतरराष्ट्रीयकरण तथा वित्तीय  पूंजी का देशों के मध्य  मुक्त प्रवाह को शामिल करता है
Ø सांस्कृतिक वैश्वीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें सूचना,उपभोक्ता वस्तु तथा उत्पादन समान एक भाग से उठाकर पूरे विश्व में  भेज दिए जाते हैं  तथा सांस्कृतिक भिन्नता को समाप्त कर देते हैं आर्थिक वैश्वीकरण के सबसे महत्वपूर्ण पक्षों में राष्ट्रीय आर्थिक बाधाओं का समाप्त होना है पर सच यह है कि वैश्वीकरण में देशों के बीच मुक्त व्यापार को बढ़ावा दिया है पर कुछ देश अपने  राष्ट्रीय बाजार को बचाए रखने के प्रयास के कारण इसके नकारात्मक प्रभाव भी हुए हैं गरीब देशों का मुख्य निर्यात सामान्यतः कृषि उत्पादन होता है, जबकि विकसित देश सामान्य अपने किसानों को सब्सिडी देते हैं जैसे EU की सामान्य कैसे नीति जिसके कारण गरीब देशों के उत्पादों का वह बाजार मूल्य नहीं मिल पाता है जो मुक्त व्यापार में मिलना चाहिए था
Ø कमजोर देशों में संरक्षण की कमी  आने के कारण मजबूत औद्योगिक शक्तियों ने सस्ते श्रमिकों के रूप में इन देशों के लोगों का शोषण क्या है
Ø शक्तिशाली औद्योगिक देशों की कंपनियां ज्यादा आवेदन देकर बहुत ज्यादा घंटे काम करवाने तथा असुरक्षित कार्य करवाने में सक्षम है यह सत्य है कि श्रमिक अपनी नौकरी छोड़ने को स्वतंत्र है, परंतु एक गरीब देशों में यह कामगारों के लिए भुखमरी के कारण हो सकता है और यहां रोजगार में परिवर्तन भी तभी संभव हो पाता है जब पहले रोजगार ना रहे
Ø विदेशी श्रमिकों द्वारा कम लागत में उत्पादन के कारण यह निम्न वस्तुओं  और सेवाओ को अन्य देशों से खरीद रहे हैं |  वह परिवार जो पहले मध्यमवर्ग में थे,व्यापक बंदी तथा रोजगार के देशों में स्थानांतरण के कारण निम्न वर्ग में पहुंच गए हैं
Ø सस्ते श्रमिकों के वजह से कंपनियों की संख्या में वृद्धि ने श्रम संगठन को कमजोर किया है संघों के कमजोर होने के परिणामस्वरुप श्रमिकों का परिवर्तन, श्रम मूल्य में कमी, बाल श्रम के शोषण में वृद्धि की घटनाएं आदि वैश्वीकरण के साथ साथ बढ़ती जा रही हैं उदाहरण वैश्वीकरण के कारण एक देश में श्रम की मांग में वृद्धि होती है
Ø साथ ही बाल श्रमिकों द्वारा उत्पादित वस्तुओं की मांग में भी वृद्धि हो रही है इसके परिणाम स्वरूप बाल श्रमिकों की मांग में वृद्धि होगी, जो कि काफी घातक है |  इससे ना केवल शोषण, वेतन जैसी समस्याएं बढ़ेगी, बल्कि बाल तस्करी, बच्चों को कैद में रखना, तथा जबरदस्ती कार्य करवाने जैसे कार्य भी बढ़ जाते हैं | और इस तरह बच्चे शिक्षा से भी वंचित हो जाते हैं वैश्वीकरण की आलोचक का यह भी मानना है कि यह योजना बहुत ही जल्दी में बनाई गई थी वैश्वीकरण की सबसे  मुख्य आलोचना विश्व आर्थिक नीति के निर्धारण में विकसित देशों का प्रभावशाली होना है
Ø  श्रमिकों का शोषण ,अनिश्चित रोजगार, निर्धनता  की समस्या में असफलता,

वैश्विक अर्थव्यवस्था में अस्थिरता, समानता और आर्थिक एकीकरण का लाभ पर विवाद

Ø आर्थिक एकीकरण शब्द  का प्रयोग उन आयामों को दिखाने के लिए किया जाता है जिन के माध्यम से अर्थव्यवस्था एकजुट हो सके, आर्थिक एकीकरण मैं वृद्धि के साथ साथ विभिन्न बाजारों के मध्य व्यापार बाधाएं खत्म हो रही हैं

Ø वरीयता(बीज बोने की प्रक्रिया) प्राप्त व्यापारिक क्षेत्र -  जिनमें एक व्यापार प्रखंड के अंतर्गत सभी सहभागी देशों के कुछ उत्पादों को वरीयता पहुंच प्रदान की जाती है यह कार्य को को घटाकर किया जाता है लेकिन इसे पूरे तरीके से समाप्त नहीं किया जाता है वरीयता व्यापार क्षेत्र की स्थापना व्यापार समझौते के माध्यम से की जा सकती है तथा यह आर्थिक एकीकरण की प्रक्रिया का प्रथम चरण है

Ø मुक्त व्यापार क्षेत्र -  मुक्त व्यापार क्षेत्र एक प्रकार का व्यापारिक प्रखंड है जिसमें एक निर्धारित समूह के सदस्य देशों के बीच प्रशुल्क, कोटा,एकीकरण के दूसरे चरण के रूप में माना जा सकता है आर्थिक एकीकरण का यह प्रकार देशों द्वारा तब प्रयुक्त होता है जब उनकी आर्थिक संरचना एक समान हो

Ø सीमा शुल्क संघ -  एक सीमा शुल्क संघ एक प्रकार का व्यापारिक ही है जो मुक्त व्यापार क्षेत्र होने के साथ एक  सामान्य  बाहिया   प्रशुल्क  नीति भी  रखता है सहभागी देश  समान विदेशी व्यापार नीति की स्थापना करते हैं परंतु  कुछ संदर्भ में यह अलग प्रकार के कोटा का प्रयोग करते हैं सीमा शुल्क संघ के गठन का उद्देश्य सामान्य आर्थिक दफ्तर को बढ़ाना तथा सदस्य देशों के बीच निकटवर्ती राजनीतिक एवं सांस्कृतिक संबंधों को स्थापित करना है यह  आर्थिक  एकीकरण का तीसरा चरण है

Ø साझा बाजार -   बाजार एक ऐसा व्यापारिक प्रखंड है जिसमें सीमा शुल्क संघ के साथ साथ उत्पादन विनियमन( अदला-बदली) हेतु  नीतियां होती हैं इसका उद्देश्य पूंजी, श्रम, वस्तुओं, एवं सेवाओं का आवागमन सदस्य देशों के बीच उसी प्रकार से हो जिस प्रकार देश के भीतर होता है यह आर्थिक एकीकरण का चौथा चरण है

Ø आर्थिक और मौद्रिक संघ -   यह एक ऐसा व्यापारिक प्रखंड है जिस में एकल बाजार होने के साथ-साथ साझा मुद्रा भी होती है यह आर्थिक का पांचवा चरण है

Ø पूर्ण आर्थिक एकीकरण -  यह आर्थिक एकीकरण का अंतिम चरण है पूर्ण आर्थिक एकीकरण के उपरांत आर्थिक नीतियों पर नियंत्रण ना मात्र ही होता है इसमें पूर्ण मौद्रिक संघ, समान राजकोषीय नीतिया, यह सभी पूर्ण आर्थिक एकीकरण वाले देशों में समान होती है

आर्थिक एकीकरण के लाभ

व्यापार  सर्जन -  सदस्य देशों को
1. वस्तुओं और सेवाओं का पहले के मुकाबले ज्यादा बेहतर चयन की सुविधा
2. व्यापार बाधा में समाप्ति अथवा कमी के कारण कम मूल्य पर वस्तुओं और सेवाओं को         
प्राप्त करना
3. सदस्य देशों के बीच व्यापार को बढ़ावा जिससे आर्थिक मुद्रा की बचत हो ताकि उनसे अन्य सस्ते उत्पाद एवं सेवाएं खरीदी जा सके

 राजनीतिक सहयोग -  एक देश के मुकाबले देशों के एक समूह का राजनीतिक प्रभाव कहीं ज्यादा होता है  एकीकृत क्षेत्र में राजनीतिक आस्थिरता तथा संघर्षों के प्रभाव से निपटने की एक महत्वपूर्ण रणनीति होती है यह वैश्वीकरण से उत्पन्न सामाजिक आर्थिक नीतियों से निपटने का एक महत्वपूर्ण साधन है

रोजगार के अवसर -  आर्थिक एकीकरण स्वतंत्र व्यापार को बढ़ाता है जिससे बाजार का स्तर, देश में आर्थिक निवेश का अगामन तथा अधिक मात्रा में तकनीकी का प्रयोग संभव होता है यह क्षेत्र के लोगों के लिए अधिक मात्रा में रोजगार के कुछ अवसर को दुलाता है जहां लोग क्षेत्र के एक देश से दूसरे देश में जाकर ज्यादा बेहतर कमाई कर सकते हैं तथा अपने उद्योग को कम लागत वाले देशों में स्थापित करते हैं

 आर्थिक एकीकरण की हानियां

व्यापार प्रखंड का निर्माण - यह  गैर सदस्य देशों के  विरुद्ध व्यापार बाधा में वृद्धि के रूप में हो सकता है
 व्यापार विचलन -  व्यापार बाधाओं के फल स्वरुप व्यापार की दिशा में एक  गैर सदस्य देशों की ओर से सदस्य देशों की ओर इस बात के बावजूद भी परिवर्तन हो सकता है  की वहां मूल्यों में अदक्षता (होने की अवस्था) है उदाहरण स्वरुप एक देश ने कम लागत पर उत्पादन करने वाले एक  गैर सदस्य देश से व्यापार बंद कर दिया है तथा अपने सदस्य देश जिसकी उत्पादन लागत अपेक्षा से ज्यादा है तो व्यापार करता है
 राष्ट्रीय संप्रभुता -  यह सदस्य देशों में अपनी महत्वपूर्ण विषय पर संबंधित नीतियां जैसे, व्यापार, मुद्रा एवं राजकोषीय नीतियों को कुछ हद तक नियंत्रित कर लेता है एकीकरण की उच्च व्यवस्था में नियंत्रण कि सीमा का और भी अधिक परित्याग करना पड़ता है

 वैश्विक अर्थव्यवस्था में असमानता और अस्थिरता

वैश्विक अर्थव्यवस्था में वृद्धि के साथ ही व्यापक स्तर पर अंतरराष्ट्रीय व्यापार, निवेश, तकनीकी नवाचार में वृद्धि होती है यह परिवर्तन औद्योगिक देशों में आर्थिक विकास के साथ-साथ रोजगार के नए अवसर का सर्जन करती है परंतु वैश्विक श्रमबल में 1980 की तुलना में 4 गुना वृद्धि हुई है और श्रमिकों की पूर्ति मांग से अधिक है वैश्वीकरण के विरोधियों के अलावा मान्यता प्राप्त अर्थशास्त्रियों तथा राजनीति लोगों ने यह प्रश्न उठाया है कि श्रम के  वैश्विक विभाजन के लाभों पर लागत अधिक बढ़ती है तथा सामाजिक अन्याय भी बड़ा है देखा जाए तो विकासशील देशों के बीच बढ़ रहे आर्थिक अंतर का संबंध तकनीकी उत्थान से है ना कि वैश्विक संचार  के बढ़ने से आय मै असमानता औद्योगिक देशों में बड़ी है

 यह तकनीकी रूप से दक्ष श्रमिकों के मुकाबले कम दक्ष श्रमिकों की आय में कम वृद्धि हुई है आर्थिक असमानता का एक मुख्य कारण बेरोजगारी है बहुत सारे देशों में बेरोजगारी का बढ़ते तथा उससे मुख्यतः कम दक्ष श्रमिकों के प्रभावित होने तथा आय की असमानता के मजबूत सह संबंध पाया गया है  वैश्वीकरण विरोधी आंदोलन यह तर्क देता है कि वैश्वीकरण देशों के बीच तथा देश के भीतर आश्चर्यजनक रूप से असमानता तक बढ़ाई है विशेष विकासशील देशों के गरीब हाशिए पर धकेल दिए गए हैं तथा उनकी स्थिति निर्धनता देशों से भी बदतर हो गई है समाजवादी के अनुसार वैश्विक मुक्त व्यापार और मुक्त बाजार धरती और इसके लोगों के शोषण का सबसे महत्वपूर्ण पूंजीवादी हथियार है वह पृथ्वी के सीमित संसाधनों का दुरुपयोग करते हैं, लोगों का शोषण करते हैं और पर्यावरण को भी नष्ट करते हैं जिस पर हम सभी आश्रित हैं

वैश्वीकरण के वैकल्पिक :  प्रकृति और लक्षण

 वैश्वीकरण के दौर ने अब वैश्विक अर्थव्यवस्था के लगभग सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर प्रभुत्व जमा लिया है,नव उदारवादी वैश्वीकरण, जब पूंजीवाद का सर्वोच्च स्तर है नव उदारवादी वैश्वीकरण के सामाजिक और पर्यावरण मूल्य निषेधात्मक हैं महत्वपूर्ण वैश्विक असमानता,गरीबी में वृद्धि, और वैश्विक जलवायु परिवर्तन है यह सभी नव उदारवादी वैश्वीकरण के द्वारा एकत्र और तीव्र हुए हैं जिसने वर्तमान जीवन को विश्व के सभी देशों  के नागरिकों के भविष्य को बुरी तरह प्रभावित किया है वैश्विक आर्थिक संकट को ध्यान में रखते हुए यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि नव उदारवादी वैश्वीकरण में बहुसंख्यक लोगों के हितों को ध्यान में नहीं रखा है तथा आर्थिक एवं पर्यावरण या दोनों रूपों में यह असतत है

वैश्वीकरण के इस संदर्भ में एक तरफ पूंजीवादी संप्रभुता है जिसका आधार विशेष अधिकार और प्रभुत्व है, वहीं दूसरी तरफ समाजवादी लोकतंत्र है जो स्वतंत्रता, एकता एवं सामाजिक न्याय जैसे तत्व पर आधारित है अधिकांश समाजवादी इस बात को मानते हैं कि पूंजीवादी अवैध रूप से शक्ति और संपदा को समाज के एक छोटे वर्ग में संचय(इकट्ठा करना) की अनुमति देता है जो पूंजी को नियंत्रित करते हैं, जिसे वे शोषण के द्वारा प्राप्त करते हैं तथा जिससे एक असमान समाज का निर्माण होता है जो सभी को अपनी क्षमता को अधिकतम करने का अवसर नहीं  प्रदान करता है और ना ही  तकनीको एवं संसाधनों की अधिकतम क्षमता का उपयोग ही हो पाता है इसके अनुसार विकसित एवं विकासशील दोनों प्रकार की अर्थव्यवस्था का उद्देश्य एक सतत, लोकतंत्र, और मुक्त समाज का निर्माण है जो क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाओं में स्वयं सक्षम हो तथा अपने पर्यावरण एवं एक दूसरे के साथ संबंध को कायम रख सके

समाजवादियों के अनुसार वैश्वीकरण के कुछ वैकल्पिक संदर्श निम्न है

 स्थानीय अर्थव्यवस्था - स्थानीय अर्थव्यवस्था का मुख्य लक्ष्य अपने क्षेत्रीय साधनों से उत्पाद, वस्तुओं तथा सेवाओं का अधिकार अधिक उत्पादन करना होना चाहिए जिन का उत्पादन वह स्वयं नहीं कर सकते हैं उसे पड़ोसी अर्थव्यवस्था से प्राप्त करनी चाहिए

पूंजी और निवेश -  पूंजी की पहुंच उद्योगों तथा पर्यावरण की स्थिति को बेहतर करने तथा रोजगार अवसरों को बढ़ाने और निवेश के रूप में होना चाहिए समाजवादियों के अनुसार यह मुक्त व्यापार द्वारा प्राप्त नहीं है स्थानीय एवं क्षेत्रीय वित्तीय संस्थाओं को प्रोत्साहित करना भी आवश्यक है इसके लिए बड़े संस्थानों को बांटना चाहिएखरीद यहां-  बिक्री यहांकी नीतियों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए

 वायदा या अनुमान व्यवस्था पर नियंत्रण -  समाजवादियों के अनुसार निवेश केंद्रित होना चाहिए ना की  अनुमान पर आधारित और सीमाओं पर वित्त व्यापार को हतोत्साहित(जिसका उत्साह नष्ट हो गया हो (जैसेहतोत्साहित व्यक्ति)) करना चाहिए आशाओं एवं शर्तों पर आधारित व्यवस्था को ऋण व्यवस्था उपलब्ध नहीं कराया जाना चाहिए करो का उपयोग छोटी अवधि में वायदा कारोबार, विशेषकर मुद्रा के वायदा कारोबार को हतोत्साहित करने के लिए होना चाहिए

पार राष्ट्रीय निगम -  बाजार को हतोत्साहित करने के विपरीत प्रभाव भी हुए हैं और यह निगम में जिस बाजार में भी व्यापार करते हैं उन पर प्रभाव एवं  प्रभुत्व बना लेते हैं छोटी अवधि में समान आकार के पार राष्ट्रीय  निगमों का प्रयोग हितों के बजाय सामान्य हितों को प्रमुखता देने के लिए होना चाहिए इसका लक्ष्य निश्चित रूप से वस्तुओं और सेवाओं में उत्पाद निवेश को प्रोत्साहित करना होना चाहिए बाजार पहुंच भी मुख्यतःयहां बैठो- यहां बेचोके नियम पर आधारित होना चाहिए

 सीमित व्यापार पहुंच -  क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर किसी कंपनी विशेष के बाजार में भागीदारी की सीमा निर्धारित होनी चाहिए ऐसे बाजार में जहां एक कंपनी विशेष का प्रभुत्व है नए उद्योगों को अनुदान, ऋण और सब्सिडी के माध्यम से प्रोत्साहन देना चाहिए, जिससे उत्पादन सुधार, संसाधनों का बेहतर प्रयोग के प्रावधान को प्रोत्साहन मिलेगा बड़े संगठनों द्वारा उठाए जा रहे लाभ को उचित रूप से दिया जाना चाहिए विदेशी बैंकिंग केंद्रों कोखरीदो यहां बेचो यहांनियम के आधार पर समाप्त किया जाना चाहिए

 बहुराष्ट्रीय  संध्या -  समाजवादियों के अनुसार यह  दृष्टिकोण सतत तथा विकास के लिए बाधक है जो वर्तमान और अंतरराष्ट्रीय व्यवस्थाओं जैसे (GATT), तथा इस का विकसित रूप (WTO) और निवेश हेतु प्रस्तावित बहुपक्षीय संधियों के रूप में सामने आया है इसके अनुसार शेष विश्व की कीमत पर यह सभी कार्य बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों तथा पूंजी वादियों के हितों को ध्यान में रखती है अंतरराष्ट्रीय व्यापार को स्वच्छ व्यापार पर आधारित होना चाहिए ना की मुक्त व्यापार पर |  स्थानीय अर्थव्यवस्था के सतत विकास हेतु इन कार्यों का किया जाना आवश्यक है इन कार्यों का उद्देश्य सतत औद्योगिक विकास द्वारा स्थानीय एवं क्षेत्रीय आत्मनिर्भरता के साथ ठहराव की प्राप्ति है

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