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11. स्थानीय इतिहास
- स्थानीय इतिहास से तात्पर्य ऐसे ऐतिहासिक लेखन से है जो भौगोलिक रूप से एक छोटे क्षेत्र पर केंद्रित होता है. इसके अलावा यह अशिक्षित श्रोताओं के लिए लिखा गया इतिहास है 18वीं और 19वीं शताब्दी में पश्चिमी देशों के द्वारा विशेषकर ब्रिटेन फ्रांस और अमेरिका में उच्च वर्ण (अभिजात्य वर्ग)के द्वारा यह स्थानीय इतिहास लिखा गया, 19वीं शताब्दी में स्थानीय इतिहास लेखन में विस्तार हुआ और स्थानीय इतिहास लेखन के लिए कई संस्थाएं भी बनी
19वीं शताब्दी में यूरोप में औद्योगिक क्रांति हुई, जिससे शहरीकरण को बढ़ावा मिला इससे लोगों का रोजगार की तलाश में यहां से वहां जाना शुरू हुआ, जिससे स्थानीय समुदाय अस्त-व्यस्त हो गया, इसके बाद उन्होंने अपनी पहचान खो दी, ऐसे समय में बुद्धिजीवी वर्ग के अंदर यह विचार आया कि स्थानीय और क्षेत्रीय स्तर पर इतिहास लेखन होना चाहिए, सन 1860 ईसा तक ऐसे कई इतिहासकार तथा समूह सामने आए,जिन्होंने स्थानीय इतिहास लेखन को आगे बढ़ाने में रुचि दिखाई,
वंश परंपरा और पारिवारिक इतिहास जैसे कुछ रुचिकर विषयों को स्थानीय इतिहास में ऐड किया गया 19वीं शताब्दी में अमेरिका में इस इतिहास लेखन को महत्व दिया गया वहां के उच्च वर्ण द्वारा जो सामाजिक जीवन के अस्तित्व को बनाए रखना चाहते थे या उसके विकास में उनकी सूची थी उन्होंने राजनीतिक की सूची और स्थानीय प्रमुख के इतिहास का संकलन (संग्रह) किया
सन 1930 ईसा तक स्थानीय इतिहास के क्षेत्र में व्यवसायीकरण देखने को मिलता है इस समय अनेक पुस्तकों की रचना हुई.
इसी तरह स्वीडन में, फ्रांस में, अमेरिका में, स्थानीय इतिहास को मजबूत बनाने में योगदान दिया, ब्रिटेन में लाइसेंस्टर में 1947 मैं स्थानीय इतिहास का पहला विभाग खोला गया जहां स्थानीय इतिहास में शिक्षण का कार्य प्रारंभ किया गया बाद में यह लाइसेंस्टर स्कूल के नाम से जाने जाने लगा इन स्कूलों का उद्देश्य स्थानीय इतिहास को बढ़ावा देना तथा स्थानीय इतिहास पर लिखे गए लेखन की जांच करना था
फिनवर्ग और hoskin उस समय के महत्वपूर्ण इतिहासकार थे, उन्होंने स्थानीय इतिहास लेखन की कई अवसरों की आलोचना की, इनका कहना था कि परंपरागत इतिहास लेखन में अभिजात्य वर्ग तथा रूढ़िवादी वर्ग द्वारा सामंतवादी परिवारों के विषय में लेखन किया गया है जबकि सामान्य व्यक्ति की उपेक्षा की गई है
फिनवर्ग का कहना है कि स्थानीय मनुष्य की उत्पत्ति, विकास, उत्थान और पतन के विषयों में लेखन होनाजरूरी है,फिनवर्ग इसके विकास को लघु क्षेत्र के रूप में स्वीकार करते हैं
एशिया और अफ्रीका में स्थानीय इतिहास का स्वरूप अलग है यहां का स्थानीय इतिहास मौखिक रूप में मिलता है. शाही वंश और युद्ध यहां की परंपरा के मुख्य विषय हैं.
भारत में भी राजवंश का इतिहास और सैनिकों की उपलब्धियों का वर्णन मौखिक रूप में किया गया,
स्थानीय इतिहास नौसिखिया और अशिक्षित लोगों के लिए मुख्य आकर्षण का खेल था. यह लोग अपने समुदाय और अतीत के बारे में अधिक रुचि लेने लगे थे. इनमें से बहुत सारे इतिहासकार ऐसे थे. जिनका जन्म उसी समुदाय में हुआ, और उन्हीं समुदाय पर इन्होंने लेखन कार्य किया.
पारंपारिक स्थानीय इतिहास मौखिक थे, जबकि नए स्थानीय इतिहास लिखित और प्रकाशित थे, नए स्थानीय इतिहास लेखन में स्थानीय मौखिक व प्राथमिक स्रोत का प्रयोग किया गया है, पुराने इतिहास लेखन ने नए इतिहास लेखन का मार्गदर्शन किया, नए स्थानीय इतिहास का लेखन पश्चिमी स्रोत पद्धति से प्रभावित था, यह इतिहास क्रमबद्ध ढंग से लिखा गया इनका लेखन किसी कल्पना धार्मिक विषयों पर आधारित न होकर विकासवादी दृष्टिकोण से लिखा गया,
इतिहास के पाठक राष्ट्रीय व स्थानीय दोनों ही हैं नए स्थानीय लेखन को आधुनिक रूप में प्रस्तुत किया गया है
- मौखिक इतिहास
मौखिक इतिहास के पक्ष में रूढ़िवादी इतिहास नहीं है यह मौखिक साक्ष्य को महत्वहीन समझते हैं पश्चिमी संस्कृति के लोगों का मानना है कि जो लिखित नहीं है वह है ही नहीं,
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टॉपर कहते हैं सन 1965 तक अफ्रीका का कोई इतिहास नहीं हो सकता है कि भविष्य में अफ्रीका का इतिहास पढ़ने योग्य हो जाएगा, लेकिन वर्तमान में ऐसा कुछ दिखाई नहीं देता , इनका कालक्रम निश्चित नहीं होता, इनके आंकड़े प्रमाणित नहीं होते, साथ ही मौखिक इतिहास छोटे स्तर पर ही प्रयोग में लाया जा सकता है,
- जॉन मौखिक इतिहास को महत्व देते हुए कहते हैं कि मौखिक परंपरा ऐतिहासिक प्रमाण के लिए स्रोत का कार्य करती है
- डेविड डनवे और बिल्ला दोनों के द्वारा संपादित “ओरल हिस्ट्री” में कई देशों के मौखिक इतिहास का वर्णन है
भले ही पश्चिम के कई देशोंके द्वारा मौखिक स्रोतों का पक्ष लिया गया, लेकिन फिर भी मौखिक इतिहास के इस्तेमाल में अनेक समस्याएं हैं लेकिन जहां लेखन के स्रोत विस्तार से उपलब्ध हैं वहां मौखिक स्रोत ज्यादा महत्व नहीं रखते.
ब्रिटेन, अमेरिका, ब्राज़ील और अर्जेंटीना, मेक्सिको, रूस और स्पेन, दक्षिण अफ्रीका जैसे कई देशों में मौखिक इतिहास के कई औपचारिक और अनौपचारिक संगठन का निर्माण किया गया. साथ ही मौखिक इतिहास पर अनेक सभाएं और सम्मेलन भी हुए मौखिक इतिहास पर हुए कई संगठनों और सम्मेलनों तथा कृतियों से यह पता चलता है अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मौखिक इतिहास लेखन को कितनी मान्यता दी गई है.
मौखिक इतिहास को रानकेवादी परंपरा को मानने वाले इतिहासकार अस्वीकार करते हैं तथा मौखिक साथियों को कोई महत्व नहीं देते उनके अनुसार आज की इस संस्कृति में जो लिखित नहीं है वह है ही नहीं वही जॉन मौखिक इतिहास के पक्ष में कहते हैं कि अतीत के पुनर्निर्माण में मौखिक इतिहास की एक विशेष भूमिका है जिन का महत्व लिखित स्रोतों के बराबर है ..
- सूक्ष्म इतिहास
यह स्थानीय इतिहास से मेल खाता है,सूक्ष्म इतिहास का स्थानीय और मौखिक इतिहास का निकट संबंध है, सूक्ष्म इतिहास में पूर्ण रूप से लघु ब्रह्मांड या पद्धति का अध्ययन है, कार्लो ,ने कहा है कि इस शब्द का प्रथम प्रयोग अमेरिकी विद्वान द्वारा किया गया है कार्लो सूक्ष्म इतिहास के एक बहुचर्चित इतिहासकार हैं, स्थानीय इतिहास मौखिक इतिहास और सूक्ष्म इतिहास तीनों ही स्थानीय क्षेत्रों में केंद्रित होते हैं
- स्थानीय इतिहास जिस प्रकार एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र तक सीमित माना जाता है उसी प्रकाश बुक्स में इतिहास समाज की छोटी इकाइयों पर केंद्रित है,
- सूक्ष्म इतिहासकारो, का कहना है कि इतिहास को सामान्य लोगों के लिए उपलब्ध कराया जाना चाहिए क्योंकि अन्य पद्धतियों ने इन्हें नजरंदाज किया है,
सूक्ष्म इतिहासकार रानकेवादी परंपरा के आलोचक हैं,यह मार्क्सवाद द्वारा विकसित किए गए ऐतिहासिक प्रतिमान, अनाल स्कूल, सामाजिक इतिहास के भी आलोचक रहे हैं, सूक्ष्म इतिहासकार आधुनिक तकनीक के विषय में आशावादी नहीं है, क्योंकि रानकेवादी तकनीक की प्रशंसा और मानव मूल्य को उपेक्षित करते हैं साथ ही वह सामान्य लोगों के अनुभव और विकास की भी उपेक्षा करते हैं,
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