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व्यापार तथा सामंतवाद का पतन | IGNOU UNIT NO - 23

 

Unit - 23                  

23. व्यापार तथा सामंतवाद का पतन

 

Ø  14  वी शताब्दी में सामंतवाद का धीरे-धीरे पतन होने लगा, तथा कुछ समय बाद यूरोप से यह व्यवस्था लुप्त हो गई, कुछ विद्वान शहरों के उदय को सामंतवाद के पतन का सबसे बड़ा कारण मानते हैं,

 

Ø  प्रौद्योगिकी का स्थान, कृषि उत्पादकता, जनसंख्या में बदलाव तथा कुछ अन्य ऐसे मुद्दे हैं जिन्हें सामंतवाद के पतन का कारण माना जाता है इसमें हेनरी, गी बुआ, मार्ग ब्लॉक, जॉर्ज डूबी, आदि प्रमुख विचारक हैं

 

Ø  भूमध्य सागरीय क्षेत्र में होने वाले व्यापार ने यूरोपीय सभ्यता को शिखर पर पहुंचा दिया था, इससे आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक का आदान प्रदान हुआ लेकिन बाद में व्यापार के समाप्त होने से विचारों का आदान-प्रदान भी समाप्त हो गया, 11 वी शताब्दी के बाद  फिर से व्यापार शुरू हुए , यह सामंतवाद के अंत का आरंभ था

 

Ø  मार्क्सवाद ने अपनी पुस्तकस्टडीज इन डेवलपमेंट ऑफ कैपिटलCapitalism ”  मैं सामंतवाद के पतन पर  अपने विचार रखे, इन्होंने व्यापार को सामंतवाद के पतन का कारण नहीं माना, व्यापार जैसी आर्थिक गतिविधियां ही दासप्रथा, सामंतवाद से पूंजीवाद को कायम रख सकती  थीवह अंदरूनी संकट को जिम्मेदार मानते हैं सामंतवाद के पतन में धर्म योद्धाओं की महत्वपूर्ण भूमिका थी उन्होंने अरबों  को यूरोप से भगाकर  उनके अपने क्षेत्र में धकेल दिया,

 

Ø  धर्म योद्धा अब  व्यापारी बन गए, तथा वस्तुओं को यूरोप के अभिजात वर्ग को ऊंची कीमत पर बेचते थे, अब यह अपनी आमदनी ज्यादा करने के लिए किसानों का शोषण करने लगे, क्योंकि इनकी आमदनी कृषि पर आधारित थी, हेनरी ने सामंतवाद के पतन में व्यापार के प्रसार शहरी केंद्रों के उदय को जिम्मेदार माना जिसे वहग्रैंड ट्रेडकहते थे, जिससे सभ्यता की प्रगति रुक जाती है

 

Ø  डॉब जैसे विचारक (मार्क्सवादी विचारकके लिए कृषि दास प्रथा, सामंतवाद का प्रमुख लक्षण है, 11 वी  शताब्दी में धर्म योद्धाओं ने अरबों को यूरोप से भगाकर उनके अपने क्षेत्र में धकेल दिया, इस समय ऐसो आराम की वस्तुएं जैसेइत्र, रेशम, मसाले संपर्क में अभी नए ही आए थे, शहरों का उदय होने से भूखे मर रहे किसानों को उत्पादन की प्रक्रिया में रोजगार का एक विकल्प मिल गया किसानों को इस चीज से पीछा छुड़ाने के लिए शहर की तरफ भागना पड़ा तथा यह वर्ग संघर्ष का ही एक रूप था यह वर्ग संघर्ष 3 तरफा था

 

 

Ø  अधिपति, कृषिदासो के बीच, अधिपतियो शहरी बुर्जुआ वर्ग के बीच, देहातों से गरीब किसानों के पलायन से अधिपति अपने आप को लाचार महसूस करने लगे इस प्रकार सामंतवाद ढह गया,

 

Ø  सामंतवाद के पतन में व्यापार की भूमिका पर बहस चल रही है डॉब, हिल्टन अन्य विद्वान सामंतवाद के पतन में शहर की प्रमुख भूमिका मानते हैं तथा शहर सामंती व्यवस्था का अंग नहीं था

 

Ø  यहां से कृषि प्रौद्योगिकी का विकास हुआ, भारी हल, दो खेत व्यवस्था के स्थान पर तीन खेती व्यवस्था शुरू हो गई, बारी बारी फसल रोपनातथा अब नई फसलेंमटर, बींस आदि सम्मुख आई,

 

 सामंतवाद के अन्य पतन के विचार

 

Ø  ड्यूबी  ने अपनी बात अलग तरीके से कहीं, ड्यूबी ने पश्चिमी यूरोप में मध्य काल के दौरान श्रम  भूमि के क्षेत्र में आंतरिक विकास की ओर ध्यान दिया और इस युग के परिवर्तन पर प्रकाश डाला

 

Ø  इसने ग्रामीण समाज को पूरी तरह बदल दिया परिवर्तन के कारण कृषक वर्ग के भीतर आपसी अंतर बढ़ता जा रहा था दूसरी ओर अधिपति के वर्ग में विभेद पैदा हो रहा था अधिपति अपनी भू संपदा की खेती, अनाज के भंडारण, बिक्री के लिए छोटे अधिकारियों पर निर्भर थे, जो ऊंची हैसियत वाले किसान थे, किसानों से वसूल किया गया सारा अनाज बेचकर प्राप्त धन अधिपति को नहीं देते थे, तथा बीच में ही हड़प जाते थे, यह किसान धीरे-धीरे धनी होते चले गए बाद में वह खुद खेती करवाते थे धीरे-धीरे यह ठेकेदार बन गए, अधिपति का कर भू- राजस्व(tax) वसूल करने का अधिपति का अधिकार था तथा ठेके पर लिए जाने लगा.

 

Ø  सामंती अर्थव्यवस्था में पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का प्रवेश होने लगा अब गांव में नव धनाढ्य वर्ग पैदा होने लगा, तथा वह अर्थव्यवस्था पर अपना अधिपत्य स्थापित करना चाहता था

 

Ø  सामाजिक भेद एक ऐसी प्रक्रिया है जो 1 दिन या 1 साल या 1 दशक में नहीं पैदा होती है इनमें सदिया लग जाती है

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